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तरही मिसरा
'हाफिज़ नासिर' की मशहूर ग़ज़ल का इक मिसरा
"तूने क्या मुझको मुहब्बत में बना रक्खा है "
वज्न- २१२२११२२११२२२२
काफिया- आ की मात्रा
रद्दीफ़- रक्खा है
तो आ जाइये मुशायरे की रौनक बढ़ाने के लिए अपनी ग़ज़लों के साथ, ग़ज़ल नहीं तो कम से कम एक दो शेर ही सही|

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vapas aane ke liye shukriya
जो हवाओं का भी रुख मोड़ दिया करते थे
खुद कि सांसों ने उन्हें आज डरा रखा है
मान gaye ustad
तितलियाँ आज मेरे घर में चली आयी है
मैंने आंगन में नया फूल उगा रक्खा है
मौत के फरिश्ते यूही नही हुए नाकाम यारों
माँ की दुआएँ है जिन्होने मुझे बचा रखा है
welcome पल्लव भाई...बड़ी गहरी बात कही है
तेरे साथ ना होने से क्या फ़र्क़ पड़ता है
मैने तो दिल तुझ ही से लगा रक्खा है
great
वो सारी हदे तोड़ दी टेटे का कर क़त्ल ,
और हम सराफत की रट लगा रक्खा है,
जोड़ बनावट मे उनका नहीं साथियों,
चेहरे पर कई कई कलई चढ़ा रखा है ,
रोना रोते हैं हिंद का अब कुछ ना होगा ,
क्या होगा जब ताज गद्दों को पहना रखा हैं
जीने की चाह ने मुझे इस कदर मजबूर किया ,
मरने से पहले पत्थर पे नाम खुदवा रखा हैं

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