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सूखी नदी के सामने

(1)

मुकद्दर की बात.


कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल गए.

सुनते है पानीदार वो अफसर बदल गए.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

 

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Comment by AVINASH S BAGDE on November 15, 2011 at 11:03am

hriday se aabhar Arun bhai.

Comment by Abhinav Arun on November 14, 2011 at 4:02pm

सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,

पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

kamaal ki gahree baat kahta sher badhai bahut bahut !!

Comment by AVINASH S BAGDE on November 14, 2011 at 12:43pm
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on October 6, 2011 at 6:43pm

मुकद्दर की बात.


कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल गए.

सुनते है पानीदार वो अफसर बदल गए.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

सुन्दर रचना बहुत सही है,आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.......................!!! 
Comment by आशीष यादव on October 2, 2011 at 12:19am

आदरणीय AVINASH S BAGDE साहब,

सुन्दर रचना की है आपने| सही बात है, सब मुकद्दर का ही खेल है, मुकद्दर अगर थोडा-बहुत बन सकता है तो सिर्फ कर्म से ही|

कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.
ये पंक्तियाँ पूरी की पूरी कहानी ही बयां करती हैं|
सुन्दर रचना हेतु बधाई|


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 1, 2011 at 9:28pm
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
वाह वाह बहुत खूब बागडे साहब, सच कहा आपने, मुकद्दर के आगे किसी का बस नहीं चलता, खुबसूरत अभिव्यक्ति,
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.
बेहतरीन बेहतरीन, कुछ पक्तियों में आप अपने भाव को पूर्णरूपेण व्यक्त कर दिया है, बधाई स्वीकार करे |

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