For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने दिल को तब धड़कते पाया था
गो कि तुम नहीं... तुम्हारा साया था --

तुम अय्यार थे जो संभल गए जल्दी
मैं अब तलक तुम्हे भूल ना पाया था --

जुल्फों की तारीकियों में गुज़रे वो लम्हे
औ कल तुम दिखीं, जब जूड़ा बनाया था --

बहुत सिकुड़ी शब-ए-वस्ल इन बाहों में
जो हुई सहर तो कोई सपना पराया था --

तेरे दर से लौटा तो फ़कीर सा खुश था मैं
नाउम्मीदियों का पोटला भी भर आया था --

लो अश्क बन गए अब दोस्त मिरे 'ताहिर'
ख़याल-ए-इश्क जो तसव्वुर में आया था --



(तारीकियों= अंधेरों; शब-ए-वस्ल= मिलन की रात; सहर= सुबह; तसव्वुर= कल्पना)

Views: 424

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 21, 2010 at 7:40pm
तेरे दर से लौटा तो फ़कीर सा खुश था मैं
नाउम्मीदियों का पोटला भी भर आया था --

लो अश्क बन गए अब दोस्त मिरे 'ताहिर'
ख़याल-ए-इश्क जो तसव्वुर में आया था --

वाह विवेक भाई वाह....इसमे की अधिक पंक्ति को मुझपर लागू होती है......शानदार रचना...बहुत खूब ...
Comment by Rash Bihari Ravi on August 19, 2010 at 3:43pm
khubsurat manmohak
Comment by विवेक मिश्र on August 19, 2010 at 2:51pm
@ राणा जी- आपकी टिप्पणी का धन्यवाद.
@ चतुर्वेदी जी- आपकी इक नज़र का शुक्रिया.
@ सतीश जी- मेरे ख़्याल आपको पसंद आये, मेरे लिए इतना ही बहुत है. धन्यवाद.
Comment by satish mapatpuri on August 19, 2010 at 11:16am
तेरे दर से लौटा तो फ़कीर सा खुश था मैं
नाउम्मीदियों का पोटला भी भर आया था --

लो अश्क बन गए अब दोस्त मिरे 'ताहिर'
बहुत अच्छे ख्याल हैं विवेकजी, शुक्रिया.
ख़याल-ए-इश्क जो तसव्वुर में आया था --

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 17, 2010 at 9:01pm
सुन्दर ग़ज़ल!
Comment by विवेक मिश्र on August 17, 2010 at 8:19pm
हा हा हा हा.. वाह गणेश भाई. मेरी ग़ज़ल से ज्यादा अच्छी तो आपकी टिप्पणी है. धन्यवाद..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2010 at 8:16pm
वाह, विवेक भाई अब "ताहिर" हो गये,
गज़ल कहने मे देखो माहिर हो गये,
आज दाद देता हूँ खचोलिया भर कर,
आप के अलीम का राज जाहिर हो गये,

अच्छी रचना , बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service