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व्याख्या (कविता)

व्याख्या
गूढ़ जीवन को सरल बोल दिए,
परिचय मिला जटिलता से,
सबको जीवन का सार बताया,
स्वयं बन गयी सारांश ताल,
स्वामिनी का रूप भी धर लिया,
पर मन बंदिनी से नहीं उबरा,
अंकुर ही मैंने अब तक रोपा है,
वाट वृक्ष बन नहीं किसी कोघोंटा है.

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Comment by Pankaj Trivedi on August 15, 2010 at 9:34pm
अलका,
अपनी कविता के बारे में बताया तक नहीं ?
कितनी सरलता से तुमने गूढ़ बात को कह दी है ! मेरी बहुत बधाई है पहली रचना के लिएँ .... |
Comment by Admin on August 15, 2010 at 12:34pm
आदरणीया अलका तिवारी जी, प्रणाम,
सर्वप्रथम स्वतंत्रता दिवस की बधाई स्वीकार करे, ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहली रचना का ह्रदय से स्वागत है, अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने, आगे भी आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा, इसी तरह मोहब्बत बनाये रखे, धन्यवाद,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 15, 2010 at 11:17am
आदरणीया अलका तिवारी जी, सर्वप्रथम तो मैं आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई देना चाहता हूँ तत्पश्चात इस खुबसूरत और बेहतरीन रचना पर भी बधाई स्वीकार करे,बहुत ही उम्द्दा और सुंदर शब्दों से सुसज्जित शानदार रचना,सुन्दर शब्दों का प्रयोग कविता को और भी खुबसूरत बना रहा है ,बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना पर,

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