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चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-५ में सम्मिलित सभी रचनाएँ


(श्री सतीश मापतपुरी जी)

 

( देश के जवानों द्वारा राखी के उपहार स्वरुप दिए गए वचन )

मुल्क अपना सदा यूँ सलामत रहे I

आबरू और अमन की हिफाज़त रहे I

बाँध दो बाजुओं पे बहन हौसला I

देश पर मरने की दिल में हसरत रहे I

ऐ हिमालय ! तेरा सर झुकेगा नहीं, तेरी ललकार पर सर कटा देंगे हम I

जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I
देश भगवान है - देश मजहब मेरा , हम करेंगे वतन की इबादत सदा I

हम जियेंगे -मरेंगे वतन के लिए, याद रखेंगे राहे शहादत सदा I

हिंद की शान में मरना आता हमें, वक़्त आने पे ये फ़न दिखा देंगे हम I

जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I

जाति, भाषा - धरम हो भले ही जुदा, पर अटल एकता एक चट्टान है I
सिक्ख -ईसाई हो हिन्दू - मुसलमां कोई, हिंदी हैं हम - हमारी ये पहचान है I

हिंद के दुश्मनों सुन लो एलान ये, तेरा नामों -निशां तक मिटा देंगे हम I

जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I

टुकड़े - टुकड़े हो जाए हमारा ये तन, पर वतन टुकड़े हो - ये गंवारा नहीं I

अपनी धरती है लाखों - करोड़ों की माँ, जब तलक हम हैं - ये बेसहारा नहीं I

मापतपुरी वतन दिल औ ईमान है, इसकी रक्षा में तन - मन लुटा देंगे हम I

जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I

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(श्री मुईन शम्सी जी) 


कहने को आज़ाद हैं हम, पर यह कैसी आज़ादी है

 चरम पे भ्रष्टाचार है पहुंचा, हिंसा है, बर्बादी है 


जनसाधारण की ख़ातिर जो बुनी कभी थी गांधी ने

 महंगी होकर धनिकों के तन पर वो सजती खादी है 


सींचा था जिस चमन को हिंदू-मुस्लिम ने अपने ख़ूं से

 द्वेष के सौदागरों ने उसमें ज़हर की बेल उगा दी है 


बात-बात पे लाइन है लगती, या धक्का-मुक्की होती

 जहां भी देखो वहां भीड़ है, सवा अरब आबादी है 


क्या कारण है, क्यों वो हमको सदा छेड़ता रहता है

 पैंसठ और इकहत्तर में जिसको औक़ात बता दी है 


लक्ष्मी, लता, रज़िया, इन्दिरा और सरोजिनी के भारत में

 गर्भ में कन्या मारी जाती, यह हरकत जल्लादी है 


नोन-तेल-लकड़ी की क़ीमत ’शमसी’ बढ़ती ही जाती

 कमर-तोड़ महंगाई ने सच कहूं क़यामत ढा दी है ।

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(श्री इमरान खान जी)

(१)

योमे आज़ादी हमें,
ये हसीं तोहफा मिला,
आके सरहद पर गले, प्यार बहनों का मिला।

हैं घरों से दूरियाँ,

पास हैं मजबूरियाँ,
कर रहे संगीन से,
कशमकश अपनी बयाँ।
ज़ख़्मे दिल पर अब हमें,
मरहमो फाहा मिला,
आके सरहद पर गले,
प्यार बहनों का मिला।

हाथ पे राखी बँधी,

घर मुझे आया नज़र,
जोश दोबाला हुआ,
होवे दुश्मन बाख़बर।
नज़रें उठें जो मुल्क पर,
धूल में दूँगा मिला,
आके सरहद पर गले,
प्यार बहनों का मिला।

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(२)

मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,

सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।

 

पाया तू अवकाश नहीं, मैं लेशमात्र न घबराई,

हाथ न रह जाये सूना, मैं सम्मुख स्वयं राखी लाई।

भाई तेरे ही कारण, करें हैं सब मेरा सम्मान,

तू मेरे दिल की धड़कन, तुझपर मुझको है अभिमान,

मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,

सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।

 

बाबा सीना तानें हैं, तेरा जब कोई जिक्र करे,

तेरी बातें कर करके, अपनी तो हर रात कटे।

कैसे तू चलना सीखा, सेना का कब हुआ जवान,

तेरे गोलू मोलू से, माँ तेरा करती गुणगान।

मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,

सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।

 

भाभी की क्या बात करूँ, देवी की तरह रहती हैं,

तेरे विरह की अग्नि को, अधिक वही तो सहती हैं।

दिल में होती हो पीड़ा होठों पर रखती मुस्कान,

ओढ़ें चादर संयम की, सबका रखती पूरा ध्यान।

मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,

सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।

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(श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी)

(१)  

भाई सरहद पर बसे, छूटा है घर-द्वार,
बहनें धर्म निभा रहीं, राखी का त्यौहार.
राखी का त्यौहार, वचन हम देते बहना,
सदा रखेंगें लाज, झुके हैं सादर नयना. 
अम्बरीष, है धन्य, बहन सरहद पर आई,
अर्पित उस पर प्राण, यहाँ कर देते भाई.. 
 

(२)

दुखी सरहद पे भाई हैं  बहन मजबूर है घर में,
नहीं त्यौहार में छुट्टी सगे सब दूर हैं घर में.
धरम की आ गयीं बहनें जो हमको बाँधने राखी-
खुशी आँखों से बहती है, खुदा का नूर है घर में.. 

 

(३)

हम बहनें हिंदुस्तान की हैं भारत हमको जां से प्यारा,
भाई सब सरहद पर अपने, अपनापन उनमें है सारा. 
जब राखी बाँधें हम उनको, दुःख दर्द देश का दूर तभी-
यह बंधन ही अवलंबन है रिपु का कर दे वारा-न्यारा..

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(श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी)

(१)

देश की लाज बचाना    

 

निरख रही तुम्हें भारत माता है फिर से आस लगाये   

हम सब बहनें मिलकर तुमको तिलक लगाने आये l   

 

यहाँ देने आये आशीष तुम्हें भारत की आन बचाओ        

सीमा पर लड़ने आये हो अब ये राखी हमसे बंधवाओ l   

 

दुश्मन के आगे मस्तक अपना कभी न झुकने देना    

गंगा-यमुना के पवित्र आँचल पर दाग न लगने देना l  

 

निकल रही हैं रोम-रोम से हम सबकी ही आज दुआयें   

रक्षा करती रहे ये राखी रखकर तुमसे सब दूर बलायें l

 

घर वापस आना सभी सुरक्षित लेकर विजय-पताका

जीत की हो मलयज सुगंध और उर में आनंद समाता ल

 

(२)

रक्षा-बंधन वीरों का 

इस देश की हम शान हैं

इस पर ही हम कुर्बान हैं l

 

हमको न है कोई भरम

इंसानियत बस है धरम

इस देश के सपूत हम

करेंगे नेक हम करम l

 

इस देश की हम शान हैं

इस पर ही हम कुर्बान हैं l

 

राखी की रखते आन हम 

बहनों का हैं अभिमान हम  

खतरों से ना अनजान हम   

इस देश पर बलिदान हम l   

 

इस देश की हम शान हैं

इस पर ही हम कुर्बान हैं l

 

भारत के हैं चिराग हम

इस देश की आवाज़ हम

दुश्मन को दें जबाब हम  

हम वीर हैं जांबाज हम l

 

इस देश की हम शान हैं

इस पर ही हम कुर्बान हैं l

 

सदा सीमा पे कर्मशील हम

रक्षा की बनें कील हम   

हर अन्याय पे दलील हम   

हैं न्याय की तामील हम l

 

इस देश की हम शान हैं

इस पर ही हम कुर्बान हैं l

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(डॉ हरदीप कौर संधू जी)

राखी - हाइकू

1

राखी के तार 

बँध पावन प्यार 

आया है द्वार 

2

रक्षा-करार 

दुआओं की बौछार 

गुँथा है प्यार 

3

भ्राता- प्रेम को 

ये प्रगाढ़ बनाए 

महीन डोरी 

4

रेशमी डोर 

है नहीं कमजोर 

नेह के छोर 

5

राखी में बँधा 

बहन का हृदय 

मोह से भरा 

6

राखी त्योहार

भाई कलाई बँधे 

दिल के तार

 
 
राखी { ताँका }

मन त्रिंजण*
यूँ काते प्रतिदिन 
मोह के धागे
राखी दिन बहना
भाई कलाई बाँधे
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(श्री अतेन्द्र कुमार सिंह रवि जी)
(१)

     ..............ग़ज़ल ................

देखिये अब धरा पे कैसा समां है छा गया

निज देश का गौरव बना ये पर्व है आ गया

 

एक ओर है कांधा वही भार जिसपे देश का

सीना है फौलाद का जो हर रण को भा गया

 

देख रहा अब देश जिनको स्नेह से है यहाँ

पाकर भगिनों की दृष्टि वो नूर रंगत पा गया

 

भरकर वो प्रेमभाव बढ रही हैं यूँ कलाई

कह रहीं ले बाँध राखी मन तो हुलसा गया

 

सज रही है वर्दी भईया देख तेरे तन पे

रंग-बिरंगी राखिओं से चार चाँद लगा गया

 

मान है तुम सब से जैसे निज देश औ धरा का

लाज रखना बस हमेशा पल का जो चला गया

 

जलती रहे ये रोशनी बढता चले ये पल

रुके न पग ये तेरे भईया जो तू बढ़ा गया

 

तोड़ दें हम जाति-बंधनआज बंधन बाँध दे

दिखा दें वो स्नेह जो हर दिल में समा गया

 

बाँध और बंधवा के राखी ले रक्षा की सपथ

'मान' तू 'आन' हम बहन हैं "रवि" से रचा गया

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(२).

गीत....................  


ला बाँध दूँ तुझको राखी 
रहे हर पल सजी कलाई 
गर्व है हम बहनों को तुझपे 
कि संग है तुझसा भाई 

है धन्य धरा उस देश की
जिसपे जनम लिया है तूने 
धन्य है वो माता भी जिसकी
कोख से जनम लिया है तूने 

आन मान सबके तुम सब 
क्या जिगर है सबने पाई 
गर्व है हम बहनों को तुझपे 
कि संग है तुझसा भाई 

लक्ष्य एक पर संघर्ष सभी का  
हम आज कहते हैं यहाँ 
एक देश है कितने हम सब 
मिलकर चलते कदम जहाँ 

खून के रिश्ते नहीं सही 
एक जिगर है सबने पाई 
गर्व है हम बहनों को तुझपे 
कि संग है तुझसा भाई 

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(श्री गणेश बागी जी)
सात एकादशियाँ (प्रतियोगिता से बाहर)

(१)
कलाई
खाली न होगी
मैं हूँ ना

(२)
हे ! वीर
आँखे क्यों नम
मैं हूँ ना

(३)
मैं कौन ?
तेरी बहना
देखो तो

(४)
भावना
बहने ना दो
आँखों से

(५)
वचन
निभाते ही हो
क्या माँगू

(६)
न चूके
दुश्मनों पर
निशाना

 (७)
प्रतीक

रक्षाबंधन
प्यार का

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(श्री आशुतोष पाण्डेय जी)

(१)

कहीं दूर कोई शोर है
शायद कोई सिसकियाँ भर रो रहा है
एक निस्तब्ध सन्नाटे में
ये शोर कहीं कुछ कह रहा है
बहुत खोजा, ना मिला
आखिर कौन क्यों रो रहा है?
कोई बंदिशों में है या फिर
खून के आंसू रो रहा है
दुनिया तो है चल निकली
लेकिन कहीं कुछ खो रहा है
एक दिन जब
इस निस्तब्ध सन्नाटे को चीर
एक आवाज आयी
अब जी नहीं सकता
तो देखा सैनिक की वर्दी में
एक जवान खून से
लथपथ गिरा है
पूछा क्या हुआ?
बोला गोली खाई
अफ़सोस नहीं
लेकिन लाज ना
रख सका राखी का
किस मुह से लौट कर जाऊं
और बहिना को ये बताऊँ
मेरे देश को
देश के रहनुमाओं
ने बेच डाला.
मैं देखता रहा
इसकी आबरू को लुटते
दुश्मनों को तो भगा दिया
लेकिन लड़ ना सका
देश के गद्दारों से
मैंने बिकते देखा है
अस्मत को देश की
जो बनते हैं भाग्य विधाता
उनको देश की सीमाओं
को बेचते देखा है
गोली खाई न जाने कितनों ने
मैंने तो इन्हें कफ़न और कौफीन
का भी सौदा करते देखा है
फिर भी चला ना
पाया गोली इन पर ये दर्द है
जब राखी बंधवाई थी
तो कहा था
देश को आजाद कर लौटूंगा
नहीं लौटा तो अफ़सोस ना करना
मर भी जाऊं ये मत कहना
मर गया, कह देना
थोड़ा मिट्टी का
कर्ज अदा कर गया
लेकिन आज जब
कुछ नहीं कर पाया
एक भी गद्दार को
मौत की नींद नहीं
सुला पाया.
किस मुंह से लौट कर जाऊं
क्या जाकर ये बताऊँ कि
अपने ही देश के सौदागरों
के हाथ देश नीलाम कर आया
मत कहना मेरे
होने वाले बच्चे को भी
कि उसका बाप मजबूर था
नहीं निभा पाया फ़र्ज राखी का
और खुद के होने का
इन शब्दों के साथ
वो सन्नाटा
और गहरा हो गया
वो सिपाही सदा के लिए सो गया
एक सवाल हमारे लिए
छोड़ गया
क्या निभाते हैं हम
मर्यादा राखी की?
हर बार कोई सिपाही
इतना मजबूर
क्यों होता है?
क्यों होता है?

--------------------------------------------------

(२)

ये सूनी कलाई ले कहाँ जाऊं
***************
ये सूनी कलाई
ले कहाँ जाऊं, 
हिमाल के भाल
पर संकट आया है
ये जिंदगानी
ले कहाँ जाऊं .
कौशल नहीं है
रण का,
गुलामी में
माँ को छोड़
कहाँ जाऊं.
*********

बिना आजादी

न लौट के आऊं
आज पुकार
आयी है.
माँ ने आवाज
लगाई है
एक सर है
जो दे दूंगा.
अगर गुलामी में
बच भी गया
क्या मुहं दिखाऊं?
*********

कसम है ना

ये धागा कच्चा
नहीं होगा.
तेरा भाई
गोली सीने
में खायेगा
खुद मर जाए चाहे
हिमाल का भाल
ना झुकाएगा
कसम है
ये धागा कच्चा
तो नहीं होगा?
**********
अब दे दे
तू आशीष
की शीश दे सकूं,
जान ले दुश्मन की
दूर दुश्मन को
दर से कर सकूं.
जीत कर आऊं
या शहीद कहलाऊं.
बस तू ये बता
ये सूनी कलाई
ले कहाँ जाऊं.
******************************
**************

(श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी)

(प्रतियोगिता में नहीं शामिल)
क्या बिगाड़ेगा उसका ज़माना 
जो चला है दुआ साथ  लेकर !
दुश्मनों  को  मिटाने  चले हैं ,
राखियों  से बंधे  हाथ लेकर !
कह  रही  है बहन  मेरे भईया ,
बुझ गया ग़र चमकता सितारा!
तेरे  बलिदान  को  मान लूँगी,
अपने राखी का प्यारा नज़ारा !
हँस  के पी जाऊँगी दर्दे ग़म को,
आँख  को  कुछ बहाने ना दूंगी!
कर भरोसा बहन का तू भईया ,
हिचकियों को मैं आने ना दूंगी !
------------------------------
---------
                     
(श्री रवि कुमार गुरु जी)

 (१)


ओ मेरे भाई बचालो , अपने हिंदुस्तान को ,
पहले तो ये डर था , मुग़ल व गोरो से ,

लूट रहे अब नेता , सौदा माँ का कर रहे ,
राखी की कसम तुझे , लड़ो जी लुटेरो से

अन्दर के जो दीमक , आ बैठे हैं संसद में ,
बहना राखी के लिए , लड़ेंगे चोरो से ,

हम देश के रक्षक , बन जाते हैं हजारे  ,
देश के खातिर हम , लड़ते हजारो से ,


भाई मेरे फौजी भाई , ले राखी बहना आई ,
तोहफे में कसम हैं , देश को बचावोगे ,

बहना मेरी बहना , तुमसे यही कहना ,
जान लड़ाकर हम , तुझको दिखायेंगे ,

आशा ही नहीं तुझपे , भैया पूरा विश्वास  हैं ,
दुश्मन को मार के , झंडा लहराएँगे  ,  ,

बहना  कसम राखी , की हम यहाँ खाते हैं
अपनी ये जिन्दगी , देश पे मिटायेंगे ,
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(२)

रखिया के लाज रखिह भाई हो सिपहिया ,

नेहिया से बांधत बिया तोहरी बहिनिया ,
जाहू जाहू  भईया हो मारी आउ दुश्मन के ,
ख़ुशी ख़ुशी पूजब हम तोहरो कलाइया ,
देशवा के दुश्मन आइल हो बोडारवा पे ,
जाई के भगाव तुहू भाई हो सिपहिया ,
बहिनी तू राखी नाही बंधालु आसारवा हो ,
जीती के हम आइब वादा करीले बहिनिया ,
हमहू जब आइब खुश पाइब माई भारती के ,
रंगवा गुलाल खूब उरईह हो बहिनिया ,
वादा करत बानी सुना बहिनी सभी जानी,
गर्व तुहू करबू बरन भाई तोहरो सिपहिया ,
बहार के दुश्मन भाई तुहू मारी दिहला हो ,
भीतर में साप फुफकारे हो सिपहिया ,
बहार के मारी दिहनी भितरो के हमी माराब ,
तोहके रखाब खुश हाल हो बहिनिया ,
कहिया उ दिन आई सब आफत मिटी जाई ,
सब केहू खुशिया मनाई हो सिपहिया , 
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(श्री लाल बिहारी लाल जी)

रक्षा की  बंधन में

बांध रही है बहना ।

धागो की डोर में लिपटी

प्यार की अनुपम गहना।

फौजी भी फर्ज निभाये,

भाई के संग बहना ।

देश की रीत-प्रीत में

हर घडी हँसते रहना।

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(डॉ बृजेश त्रिपाठी जी)


वीर जवानों के हाथों में बहनों प्यार से बांधो राखी

 देख रही है  बड़े लाड़ से भारत माता बन कर साखी

मुंह मीठा करवा दे ना तू आज जवानों का  ऐ बहना     

चलें ज़रा ये जोश में आकर सारे देश का है ये कहना

 

घर को जाने कहाँ छोड़कर निकल पड़े ये वीर जवान

माता इनकी अब भारत माँ, घर है पूरा हिंदुस्तान

बहन खोज लेतीं खुद इनको, पूरा देश बना परिवार

राखी नहीं ये बांध रहीं हैं देखो अपने मन का प्यार

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(श्री संजय मिश्र हबीब जी)

(१)

भाई यह नेह का बंधन है  

मेरे उर का स्पंदन है

गौरव स्थापित कर माँ का

तू आया है, अभिनन्दन है.

 

तेरे कांधों यह बोझ डला,

तेरे पैरों यह मुल्क चला,

तू है करके सोते हैं सब,

तू है तो दूर समस्त बला

तू मुस्तकबिल देश का है

तेरा हम करते वंदन हैं.

 

मैं जानूं. नेह का बंधन है

महके जैसे कि चन्दन है

प्यारी बहना मैं आज कहूँ

मेरा भी यह स्पंदन है

 

बहना तेरा प्यारा मुखडा,

मानो चन्दा का है टुकड़ा

हर कठिनाई में संबल है

यह दूर करे सारा दुखडा

तेरी भोली सी यही हंसी

हर बियाबान में नंदन है.

 

(२)

भाई रे... भाई रे... भाई रे...
आजा रेशम की डोर बाँधूं
तेरी कलाई रे..
 
कह तो भला क्यूँ चुप सा खडा है?
किसका गम तेरे दम से बड़ा है?
देख ले झोली भर मैं
खुशियाँ लाई रे....
 
अपने घर से तू दूर बहुत है
यादों का तूफां, क्रूर बहुत है
मैं भी तो हूँ तेरी
बहना की नाईं रे...
 
सीमा पर तू देता है पहरा,
तेरे सर है जीत का सेहरा,
देख ये बहना देती
तुझको बधाई रे...
 
आज लगा है खुशियों का मेला
भाई ये रिश्ता है अलबेला
मिसरी में घोल घोल
रब ने बनाई रे...
-------------------------------------------------------
(श्रीमती वंदना गुप्ता जी)

 

मेरे भैया

राखी का वचन निभाना

कच्चे धागे मे बाँध रही हूँ

अपनी हर आस साध रही हूँ

देश की आन सौंप रही हूँ

आज तुझे है फ़र्ज़ निभाना

बहन की राखी का मान रखना

मेरे सर को ना झुकने देना

आज वक्त ये आया है

माँ ने तुझे बुलाया है

अपनी जान गंवा देना

मगर माँ की आन बचा लेना

मेरी राखी का कर्ज़ अदा कर देना

मगर भैया मेरे

तू ना कभी हिमालय का

सिर झुकने देना

मेरी हर राखी का बस

मोल यही है

मेरे भावो की बस

उपज यही है

मै भी दुआ करूँगी

उम्र मेरी भी तुझे लग जाये

तू सलामत रह जाये

और देश की आन भी बच जाये

तेरा सिर भी फ़क्र से उठ जाये

और मै भी पुकार उठूँ

आज मेरे भाई ने

राखी का मोल अदा किया

देश को दुल्हन बना दिया

 

बहना

सिर ना तेरा झुकने दूँगा

राखी के हर धागे का

मोल अदा करूँगा

माँ की आन की खातिर

खुद को भी कुर्बान करूँगा

पर एक वचन मै भी चाहता हूँ

गर शहीद मै हो जाऊँ

तू ना आँसू बहा देना

सिर्फ़ इतना तू कर देना

झण्डे का सिर ना झुकने देना

इक भाइयों की फ़ौज बना देना

हर भाई मे तू मुझे ही देखना

पर कलाई ना सूनी रहने देना

उनमे भी यही जज़्बा फ़ूँक देना

कुछ ऐसे तू भी मेरी बहना

कुछ वतन का फ़र्ज़ निभा देना

कुछ वतन का फ़र्ज़ निभा देना

-----------------------------------------------------

(श्री बृज भूषण  चौबे जी) 


सर पे टोपी बदन पर वर्दी

जब राखी बाँध दे बहना ,
सरहद पे लड़ने ये जायेंगे 
इन वीरों क़ा क्या कहना ,
झुके ना शीष किसी हालात में
चेहरे पे बनी मुस्कान रहे ,
हम भारत के योद्धा हैं
माथे का चक्र पहचान रहे ,
इस रेशम के धागे की 
कसम निभाएगा ये भाई ,
मिटेगी ना तेरी माथे की बिंदिया 
सुनी ना पड़ेगी कभी कलाई ,
हाथों को फौलाद बना जब 
सीमा पर हम जायेंगे ,
भारत माता की रक्षा कर 
राखी की लाज बचायेंगे !!!..............
---------------------------------------------------------
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
(1)

(प्रतियोगिता से अलग)
सीमा पर संयमित खड़े, प्रहरी के अनुरूप,
महिलाएं दिखतीं सगी, बहिनों का प्रतिरूप.
बहिनों का प्रतिरूप, बाँधने आयीं राखी,
हर धागे का प्यार, बहन की देता साखी.
कहें सुकवि आलोक, धर्म की बहन नसीमा.
सदा सुहागन रहे, देश भारत की सीमा..

(2)
रखिया बँधवावन आय सका नहिं देश क कारण सैनिक कोई,
बहिनी धरी के रखिया चिठिया,बिच डाक म डारि बिसूरति होई.
भगिनी पहिरावन आय गई निज धर्म क भाई बनाय क रोई,
यह पावन सावन की परबी, शुची प्रेम पगी अनुराग की धोई..
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(श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी)

महज़ औपचारिकता के धागे कहाँ टिकते हैं?
ये तो बाज़ार में राखी के नाम से खूब बिकते हैं
ना हाथ में थाल हैं ना माथे पर तिलक कोई,
ऐसे आयोजन महज़ सरकारी से दिखते हैं
एक नहीं, कतार लगी है यहाँ पर बहनों की,
एक राखी के वादे ही पन्जों पर खड़ा रखते हैं!
--------------------------------------------------------------
(श्री दुष्यंत सेवक जी)

सरहद की रखवाली करते
हमको ना सुधि आई
कब बीती होली दीवाली
और कब राखी आई
सुबह सुबह जब नींद खुली
तो ताकि सूनी कलाई
छुटकी तेरा सिमरन करके
ये आँखें भर आई
लेकिन मैं बडभागी हुआ जो
तू बहना यहाँ आई
बाँध सूत का प्यारा बंधन
मुझे बनाया भाई
बंदूकों, बारूद में हमने
सब खुशियाँ बिसराई
पर बहना तेरे बंधन से
खुशियाँ हुई सवाई
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अरे वाह, क्या बात है, १२.०० बजे प्रतियोगिता समाप्त हुई और १२.०१ बजे आपने सभी रचनाओं को संग्रहीत कर पोस्ट भी कर दिया, आश्चर्य किन्तु सत्य, बहुत बहुत बधाई प्रधान संपादक जी | 

गणेश, योगराज जी की कार्यक्षमता के हम सभी कायल हैं..चाहें रपट हो या रचनाओं को संग्रहीत करके पोस्ट करना. है ना ?

धन्यवाद "आदरणीया" शन्नो जी !

धन्यवाद बागी भाई, इतनी तुरत फुरत रिपोर्ट देने के बाद अब तो भूतपूर्व युवा का खिताब नहीं देंगे न ?

वाह वाह वाह ! क्या बात है आदरणीय प्रधान संपादक जी ! इधर प्रतियोगिता ख़त्म नहीं हुई उधर तुरंत ही सारी की सारी कवितायेँ एक साथ में ..........यानी कम्प्युटर से भी तेज ......:-)

अम्बरीश जी एवं सौरभ जी, आपसे सहमत हूँ. सही कहा कि..कम्प्यूटर से भी तेज. मैं भी योगराज जी की इस क्षमता से अचंभित हूँ :)

आपका आदेश था कि रिपोर्ट जल्द-अज-जल्द सबमिट की जाए - तो मैं उसकी हुकुम-उदूली कैसे करता हुज़ूर ? सादर धन्यवाद !  

अरे वाह..!!   प्रतियोगिता अभी समाप्त हुई नहीं कि समस्त रचनाएँ संग्रहीत..!! .. प्रधान सम्पादकजी की हार्दिक संलग्नता का बेहतर उदाहरण.

We all are aware that the technology is fast now but the commitment does keep us faster..!!!

सादर.

सादर आभार आदरणीय सौरभ भाई जी !

धन्यवाद आशुतोष जी !

आदरणीय योगराज जी सभी रचनाओं को एक जगह समेत कर आपने  एक संग्रहनीय कार्य किया है | इस बार देश - काल - परिस्थिति के दृष्टिगत इस चित्र को देखकर रचना करना वाकई चुनौतीपूर्ण रहा होगा परन्तु सदस्य रचनाकारों ने इस सक्रियता से अपनी अद्वितीय  क्षमता का परिचय दिया है | सभी को शुभकामनाये | और हाँ जय ओ बी ओ !!

धन्यवाद अरुण भाई !

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Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
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