आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
विषय : "अधूरे ख्वाब"
आयोजन अवधि- 14 दिसंबर 2024, दिन शनिवार से 15 दिसंबर 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 दिसंबर 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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आ. भाई चेतन जी अभिवादन।
दोहा- किसान, महान, समान आदि से प्रारम्भ नहीं होना चाहिए। इस मामले में आपकी टिप्पणी अनुपयुक्त है।
दोहा सप्तक
***
दिवस धतूरा हो गये, रातें हुई शराब
हँसी खुशी यूँ छिन गयी, रहे अधूरे ख़्वाब।।
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स्वप्न अधूरे ही रहे, जिन लोगों के नित्य
राजा होकर भी रहे, वो सब जैसे भृत्य।।
*
लिए अधूरे स्वप्न सब, जीने को मजबूर
बनी कहावत इसलिए, दिल्ली सबसे दूर।।
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द्वेष करे है स्वप्न को, तोड़फोड़ कर चूर्ण
प्रेम अधूरे स्वप्न को, कर देता है पूर्ण।।
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जिनके पूरे हो गये, फूँक रहे वो शंख
कहो अधूरे स्वप्न को, कौन लगाए पंख।।
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दुर्लभ है जीवन मनुज, सदा मना तू जश्न
आत्महंता न बन कभी, भले अधूरे स्वप्न।।
*
लिए अधूरे स्वप्न जो, निशदिन रहे उदास
चलो बँधाएँ इक नयी, उनमें फिर से आस।।
*
*
मौलिक /अप्रकाशित
दुर्लभ है जीवन मनुज, सदा मना तू जश्न
आत्महंता न बन कभी, भले अधूरे स्वप्न।//वाह..बहुत सुन्दर दोहासप्तक..हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों फर उपस्थिति और अनुमोदन के लिए आभार।
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। दोहों फर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
आदरणीय हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए|
कम्प्यूटर में समस्या है इसलिए मोबाइल के माध्यम से संक्षिप्त टिप्पणी पोस्ट कर रहा हूँ|
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों फर उपस्थिति और अनुमोदन के लिए आभार।
आदरणीय हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए|
कम्प्यूटर में समस्या है इसलिए मोबाइल के माध्यम से संक्षिप्त टिप्पणी पोस्ट कर रहा हूँ|
अलविदा (गीत)
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चौबिस का कैलेंडर कहता
आई जाने की बारी
वर्ष हो गया पूरा यह भी,खत्म हुई अपनी पारी
मेरे पन्नों के सीने पर
इस घर के सब हैं किस्से
कभी खुशी की थी बौछारें
कभी निराशा थी हिस्से
साथ-साथ इन लोगों के मैं
हँसता रोता गाता था
सुख-दुख की लहरों में इनकी
मैं भी गोता खाता था
कभी ख्वाब रह गये अधूरे,और कभी बाजी मारी
पापा जी को मिला प्रमोशन
खुशियों का क्या कहना था
मम्मी जी ने उस दिन अपना
सूट गुलाबी पहना था
गुड्डो रानी की शादी में
नाचा घर का हर कोना
दादा जी ने खूब मिठाई
खाई भर-भर कर दोना
दादी बोली मैं भी नाँचूँ,पर हूँ घुटनों से हारी
पुत्र बसा है जा विदेश में
भूल गया है घर अपना
दादी कहती देख उसे लूँ
बस अन्तिम मेरा सपना
सपने तो सपने होते हैं
पूरे कब हैं हो पाते
सोच रहा है भारी मन से
कैलेंडर जाते जाते
ख्वाब अधूरे बड़ा सालते,पर जीवन रहता जारी
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मौलिक व अप्रकाशित
सपने तो सपने होते हैं
पूरे कब हैं हो पाते
सोच रहा है भारी मन से
कैलेंडर जाते जाते
वाह बहुत खूब मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी। बहुत सुंदर विचार।
आदरणीया हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए|
कम्प्यूटर में समस्या है इसलिए मोबाइल के माध्यम से संक्षिप्त टिप्पणी पोस्ट कर रहा हूँ|
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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