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दस वर्षीय का सवाल

सपूत को स्कूल वापिसी पर उदास देखा

चेहरा लटका हुआ आँखों में घोर क्रोध रेखा

कलेजा मुंह को आने लगा

कुछ पूछने से पहले जी घबराने लगा

 

आखिर पूछना तो था ही

जवाब से जूझना तो था ही

जवाब मिला

ग्लोबल वार्मिंग !!

 

ग्लोबल वार्मिंग ??

माथा ठनका !

बेचारी उषमिता ने ऐसा क्या कर दिया

कि लाल को इतना लाल कर दिया

 

जवाब जारी था कि

आपकी पीढी का सब किया कराया है

पारे को इतना ऊपर पहुँचाया है

क्या जरूरत है एक परिवार को तीन चार कारों की

रेफ्रिजरेटरों की कतारों की

बड़े बड़े कारखानों की

इतने ऊंचे मकानों की

रसायन प्लास्टिक उत्पादों की

मूक पशुओं के स्वादों की

धुवां उगलते विमानों की

परमाणू कारनामों की ..........

 

पूत की वैश्विक चिंता के भाषण ने कमाल कर दिया

दस वर्षीय की इस दार्शनिकता ने निहाल कर दिया

पर मेरा सवाल अभी भी सर उठाए था

आज की अचानक चिंता पर बवाल मचाये था

 

बोले कि ग्लोबल वार्मिंग न होती तो कितना मज़ा आया होता

कक्षा से बाहर रहने पर सर न चकराया होता

 

राज़ खुला कि प्रबुद्ध जी के ज्ञान की खिड़की इसलिए खुली थी

कि आज धूप में खड़ा होने की सजा मिली थी .......

मौलिक व अप्रमाणित 

 

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2021 at 5:32pm

वाह बहुत ही शानदार हास्यात्मक गंभीरता समेटे हुए रचना...हार्दिक बधाई आदरणीया

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on May 5, 2021 at 6:10pm

हा हा हा। बहुत मस्त कविता। उत्तम हास्य

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 5, 2021 at 5:20pm

आ. अमिता जी, अच्छी व सीख देती रचना हुई है । प्रक्रिति भी निश्चित तौर पर दण्डित कर रही है कि कुछ चेतें । इस रचना पर हार्दिक बधाई ।

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"   आदरणीय मिथिलेश जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार.…"
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