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विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामना।

32 मात्रिक छंद "रस और कविता"

मोहित होता जब कोई लख, पग पग में बिखरी सुंदरता।
दाँतों तले दबाता अंगुल, देख देख जग की अद्भुतता।।
जग-ज्वाला से या विचलित हो, वैरागी सा शांति खोजता।
ध्यान भक्ति में ही खो कर या, पूर्ण निष्ठ भगवन को भजता।।

या विरहानल जब तड़पाती, धू धू कर के देह जलाती।
पूर्ण घृणा वीभत्स भाव की, या फिर मानव हृदय लजाती।।
जग में भरी भयानकता या, रोम रोम भय से कम्पाती।।
ओतप्रोत वात्सल्य भाव से, माँ की ममता जिसे लुभाती।।

अरि की छाती वीर भाव से, छलनी करने भुजा फड़कती।
या पर पीड़ निमज्जित छाती, जिसकी करुणा भरी धड़कती।।
या शोषकता सबलों की लख, रौद्र रूप से नसें कड़कती।
या अटपटी बात या घटना, मन में हास्य फुहार छिड़कती।।

अभियन्ता ज्यों निर्माणों को, परियोजित कर के सँवारता।
बार बार परिरूप देख वह, प्रस्तुतियाँ दे कर निखारता।।
तब वह ईंटा, गारा, लोहा, जोड़ धैर्य से आगे बढ़ता।
और अंत में वास्तुकार सा, नवल भवन सज्जा से गढ़ता।।

भावों को कवि-मन वैसे ही, नया रूप दे दे संजोता।
अलंकार, छंदों, उपमा से, भाव सजा कर शब्द पिरोता।।
एक एक कड़ियों को जोड़े, गहन मनन से फिर दमकाता।
और अंत में भाव मग्न हो, प्रस्तुत कर कर के चमकाता।।

जननी जैसे नवजाता को, लख विभोर मन ही मन होती।
नये नये परिधानों में माँ, सजा उसे पुत्री में खोती।।
वही भावना कवि के मन को, नयी रचित कविता देती है।
तब नव भावों शब्दों से सज, कविता पूर्ण रूप लेती है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

(अभियन्ता= इंजीनियर; परियोजीत= प्रोजेक्टींग; परिरूप= डिजाइन; प्रस्तुती= प्रेजेन्टेशन )

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 30, 2021 at 10:19am

जनाब समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 30, 2021 at 10:17am

आदरणीय बृजेश कुमार जी आपका हृदय तल से आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 1, 2021 at 8:14pm

बहुत अच्छी रचना हुई आदरणीय अग्रवाल जी...हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 6:19pm

जनाब बासुदेव अग्रवाल जी आदाब, बहुत समय के बाद आपको यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई ।

अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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