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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ तेरहवाँ आयोजन है.   

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

19 सितम्बर 2020 दिन शनिवार से 20 सितम्बर 2020 दिन रविवार तक
 
इस बार के छंद हैं - 

हरिगीतिका छंद 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं. 

चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

हरिगीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 सितम्बर 2020 दिन शनिवार से 20 सितम्बर 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

साहसी नारियाँ
------------------

चल री सखी परिपाटियों को आज हम तुम तोड़ दें
धारा बहे विपरीत दिक् उस की दिशा को मोड़ दें

अब तक रहेंगी कोठरी में बंद दब कर लाज से
कंदुक बना संसार को ठोकर लगाएँ आज से

यह सृष्टि देखे मुख खिला देखे हमारी भी हँसी
आश्चर्य दर्पण भी करे, थी ये कहाँ अब तक छुपी

जीवन जियें ऐसे कि ज्यों उद्यान की हों तितलियाँ
मर्याद ऐसे ध्यान हो ज्यों मध्य जल के मछलियाँ

अब तोड़ कर बंधन सभी, कर तार-तार कुरीतियाँ,
करने सशक्तिकरण स्वयं का चल पड़ी अब नारियाँ

सब दृष्टियों की निम्नता को, श्रेष्ठता से काट दें
आकंठ जग को खिलखिलाहट से सदा को पाट दें

क्या लोग कहते हैं न भय, चिंता न हो उपहास की
ये जग समर्पण कल करेगा, बात है विश्वास की

छाया को अपनी टाप कर ऊँची छलांगों से चलो
प्रसन्नता यदि पाप है तो पाप ये करते चलो

"मौलिक व् अप्रकाशित

उल्लास जीवन मंत्र का ही जाप बस करते चलो।

संशोधन: कृपया अंतिम पंक्ति इसे पढ़ा जाए

आदरणीय  अजय भाई

गृहणियों का जोश और उत्साह बढ़ाती लम्बी और सुंदर रचना। हृदय से बधाई

चार सामान्य त्रुटियाँ हैं।

आज हम तुम तोड़ दें ............... आज मिलकर तोड़ दें

अब तक रहेंगी .......  कब तक रहेंगी

मात्रा कम करने के लिए मर्याद लिखना ठीक नहीं।

छाया को अपनी टाप कर ....... मात्रा ज्यादा है

सादर

रचना पर अपनी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार अखिलेश भाई।

आपकी सभी इंगित त्रुटियां का संज्ञान लिया है तथा सूत्रधार से अनुरोध है कि अंतिम संकलन में इनका संशोधित रूप ही डालें।

हालांकि मैंने "मर्याद" शब्द बहुत जगह पढ़ा है। मानस में भी प्रयोग हुआ है। फिर भी आपका सुझाव अमूल्य है तथा इस पंक्ति को बदलने का प्रयास करता हूँ।

पुनः आभार

चित्र के भावों को उकेरती बहुत सुन्दर छंद रचना हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी। मात्रा के अनुसार साधने के लिये आपने अंतिम पंक्ति में संशोधन किया है पर भाव अनुसार पहले वाली पंक्ति अधिक मुखर थी । इसको आप ऐसे भी कर सकते हैं // उल्लास है गर पाप तो फिर, पाप ये करते चलो//

शुक्रिया प्रतिभा जी। आपका प्रोत्साहन और सुझाव दोनों महत्वपूर्ण हैं। आपकी सुझाई पंक्ति ही रखने का प्रयास करूंगा।

बहुत सुन्दर रचना है

आभार वंदना जी

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन । उत्तम छंद हुए है । हार्दिक बधाई ।

शुक्रिया लक्ष्मण भाई

आदरणीय अजय गुप्ता जी, आपके शिल्पगत प्रयास पर हार्दिक धन्यवाद 

वस्तुतः, शिल्प के सध जाने की प्रक्रिया के बाद भाव के संप्रेषण पर ध्यान दिया जाना ही रचनाकर्म का हेतु है. आपकी प्रस्तुति की पंक्तियों में सम्प्रेषणीयता को तनिक और सुगढ़ होना चाहिए.

जैसे, 

चल री सखी परिपाटियों को आज हम तुम तोड़ दें .. इस पंक्ति में परिपाटियों का सामान्यीकरण अन्यथा कर्म की श्रेणी में ही गिना जाएगा. 

मर्याद ऐसे ध्यान हो ज्यों मध्य जल के मछलियाँ .... इस पंक्ति को तनिक और स्पष्ट होना आवश्यक है. 

 

शैल्पिक दृष्टि 

यह सृष्टि देखे मुख खिला देखे हमारी भी हँसी
आश्चर्य दर्पण भी करे, थी ये कहाँ अब तक छुपी ... ऐसी तुकान्तता छांदसिक रचनाओं में नेष्ट है. देवनागरी लिपि के गुणों के अनुसार स्वरों की मात्राएँ व्यंजनों के साथ मिल कर उसका हिस्सा हो जाती हैं. अतः, मात्राओं की तुकान्तता छांदसिक रचनाओं में स्वीकार्य नहीं होती हैं. 

मैंने आपकी प्रस्तुति पर शिल्पगत तथा भावगत चर्चा इसलिए की, कि रचनाकारों द्वारा इसका संज्ञान लिया जाएगा. 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

शुभ-शुभ

श्री सौरभ जी, आपकी टिप्पणी ने मन को उत्साह दे दिया है। शुक्रिया। बहुत बहुत आभार इस विस्तृत विमर्श हेतू

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