For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 212

.
जो तुम्हारा है हमारा क्यों नहीं
ये किसी ने भी बताया क्यों नहीं

शह्र से मज़दूर आए गांव क्यों
वक़्त पर उनको सँम्हाला क्यों नहीं

लाख तारे आसमाँ पर थे मगर
इक भी मेरी छत पे आया क्यों नहीं

ख़्वाहिशों की भीड़ से ही पूछ लो
मुझको इक पल का सहारा क्यों नहीं

ज़िन्दगी भी दे रही ता'ना हमें
लफ़्ज़ खु़शियों का लिखाया क्यों नहीं

हारते हैं ग़म से "निर्मल" रोज़ ही
जीतना हमको सिखाया क्यों नहीं

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 340

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 10, 2020 at 9:58am

मुहतरमा रचना भाटिया जी, आदाब।

आपने बताया है कि 'निर्मल' तख़ल्लुस आपको बेहतर लग रहा है, मगर ग़ौर करें कि 'निर्मल' शब्द पुल्लिंग है। आप चाहें तो अपने नाम

'रचना' को भी अपना तख़ल्लुस रख सकती हैं, या जो भी आपको बेहतर लगे। हाँ मगर, जो भी तख़ल्लुस आप तय करें उसे अपने प्रोफाइल में जाकर नाम के साथ ऐड (एडिट) कर लें।

"शह्र से मज़दूर आए गांव क्यों

वक़्त पर उनको सँम्हाला* क्यों नहीं" *सहीह लफ़्ज़ "संभाला" है। 

Comment by Rachna Bhatia on June 9, 2020 at 11:07am

आदरणीय अमीरुद्दीन ' अमीर ' जी ग़ज़ल तक आने तथा क़ीमती समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। "आसमाँ में तारे ..." इस्लाह के लिए धन्यवाद। जी निर्मल ही मेरा तख़ल्लुस है और रचना मेरा नाम है , इसलिए मुझे निर्मल ही बेहतर लग रहा है। आदरणीय बहुत गौर करके ही ग़ज़ल पोस्ट की थी,पर आप जैसी पारखी नज़र नहीं है।

सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 5:14pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें। 

"लाख तारे आसमाँ पर थे मगर          तारे आसमाँ पर नहीं आसमाँ में होते हैं। इसलिए चाहें तो 

इक भी मेरी छत पे आया क्यों नहीं.   " आसमाँ में लाख तारे थे मगर " कर सकते हैं।

" हारते हैं ग़म से निर्मल रोज़ ही          ये निर्मल कौन हैं? क्या 'निर्मल' आप का तख़ल्लुस है, अगर ग़लती हुई है और आप                    जीतना हमको सिखाया क्यों नहीं     यहाँ 'रचना' टंकित करना चाह रहीं थीं "हारते हैं ग़म से 'रचना' रोज़ ही" तो संशोधन कर लें।

आपसे एक निवेदन ये है कि रचना पोस्ट करने से पहले और बाद में भी एक बार स्वयं भी नज़र ए सानी कर लिया करें। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service