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हिन्दी दिवस - लघुकथा

उस दिन मैं हिन्दी दिवस के एक समारोह में शामिल होने के लिए शेयरिंग कैब में दिल्ली एयरपोर्ट से सिविल लाइंस जा रहा था। कैब में दो और सहयात्री सवार थे। वे दोनों पीछे की सीट पर और मैं फ्रंट सीट पर था। उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो पता चला एक मद्रासी तो दूसरा राजस्थानी है। 
मद्रासी – तुम कहाँ का रहनेवाला है ? 
राजस्थानी – आई’m फ़्रोम जयपुर, एंड यू ? 
मद्रासी – मैं चेन्नै में रहता। तुम क्या करता है ? 
राजस्थानी – आई’m ए एग्जीक्यूटिव इन बैंकिंग सेक्टर। एंड यू ? 
मद्रासी – मैं यूके में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। 
अँग्रेजी भाषी मद्रासी को हिन्दी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु, जबरन हिन्दी बोलकर गौरवान्वित महसूस कर रहा था और हिन्दी भाषी राजस्थानी को अँग्रेजी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु, जबरन खुद को अँग्रेजी में उगलने का भरसक प्रयास कर अपना कद बढ़ाना चाह रहा था। 
मैं अपना गंतव्य तक पहुँच गया, कैब से उतरते ही मद्रासी से कहा – शुक्रिया, मुझे आप पर गर्व है। और हिन्दी दिवस की एक शुभकामना कार्ड उसकी ओर बढ़ा दिया। 
राजस्थानी हमें कन्फ़्यूज्ड होकर देखता रहा, वह कुछ समझ पाता तब तक मैं आगे निकल चुका था।

@ गोविंद पंडित ‘स्वप्नदर्शी’

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on October 13, 2016 at 12:38pm

आ. शिज्जू शकूर जी बहुत-बहुत धन्यवाद । 

Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on October 13, 2016 at 12:36pm

आ. हरिकिशन जी, मैं हिन्दी की शुद्धतावादी का उपासक नहीं हूँ, मेरी रचना आम बोलचाल की भाषा में है और मैंने उसे उसी रूप में रखा है, अगर शब्दों की कट्टरता दिखाता तो शायद यह रचना उतनी जीवंत नहीं हो पाती।  जहां तक क्षेत्रवाद का प्रश्न है तो मैंने सिर्फ लोगों की अंग्रेज़ियत मानसिकता को दर्शाने का प्रयास किया है पात्र चाहे जिस भी क्षेत्र से हो यह उतना मायने नहीं रखता है। परिस्थितियानुसार एक पात्र हिन्दी भाषी तो दूसरा अहिंदी भाषी होना कुछ ज्यादा ही उचित जंचा। फिर भी प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।    

Comment by harikishan ojha on October 6, 2016 at 10:11pm
आ. गोविन्द जी शायद आप भी हिंदी की बजाय अंग्रेजी पर ही जोर दे रहे है तभी तो फ़्रंट, कंफ्यूज, शेयरिंग जेसे सबद प्रयोग में लाकर हिंदी की बजाय अंग्रेजी का मान कर रहे है हिंदी में अगर कथा कहई जाए और वो हिंदी दिवस पर हो तो विशेष कर शब्दों का ध्यान रखना चाहिए, और हिंदी का काम एक सूत्र मे बाँधने का है इस में छेत्रवाद की बात नहीं होनी चाहिये, हम सब हिंदी है धन्यवाद

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2016 at 5:51pm

आ. गोविंद पंडित जी अच्छा प्रयास है बधाई आपको

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