For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टिमटिमाते तारे की रोशनी में

मैंने भी एक सपना देखा है ।  

टुटे हुए तारे को गिरते देखकर

मैंने भी एक सपना देखा है ।  

सोचता हूं मन ही मन कभी

काश ! कोई ऐसा रंग होता

जिसे तन-बदन में लगाकर

सपनों के रंग में रंग जाता ।

बाहरी रंग के संसर्ग पाकर

मन भी वैसा रंगीन हो जाता ।

सपनों से जुड़ी है उम्मीदें, पर   

उम्मीदों की उस परिधि को

क्या नाम दूं ? सोचता हूं तो 

मन किसी अनजान भंवर में

दीर्घकाल तक उलझ जाता है।

कोई अनसोची जवाब उभरता

फिर क्षण भर में लुप्त हो जाता है ।   

उम्मीद ही तो वह संजीवनी है

जिसके सहारे सपनों की राह में

आने वाली हर चुनौतियों के आगे

ना कभी मस्तक झुका ना दिल हारा ।  

उम्मीदों की इसी कश्ती में होकर सवार

मैं सपनों की रंगीन दुनिया ढूंढ निकालूँगा । 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 25, 2016 at 7:51pm

आ. गिरिराज सर, आपका स्नेह मेरे उत्साह का स्रोत है, आपको मेरा यह प्रयास अच्छा लगा, मेरा लिखना सफल हुआ. 

Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 25, 2016 at 7:46pm

आ. समर साहब आभार, आपको कविता पसंद आई, आपका प्यार मिला. 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:16pm
जनाब गोविन्द जी आदाब,इस प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:32pm

आदरनीय गोविन्द भाई , जब तक सांस है तब तक आस है ,  आपकी कविता अच्छी लगी । हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
26 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
yesterday
Shabla Arora updated their profile
yesterday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रदत्त विषयानुसार मैंने युद्ध की अपेक्षा शान्ति को वरीयता दी है. युद्ध…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service