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धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला

कोई पढ़वाता नमाज है, कोई जपवाता माला।
भारत और इंडिया का, देखो यह है गड़बड़झाला।
धर्म, जाति, मक्कारी की, हाला उसने जो पी ली है।
मानवता को नोंच, नोंचकर, लगा रहा मुंह पर ताला।
राम, रहीम, मुहम्मद हमको मिले नहीं हैं अभी तलक।
धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला।
भावों का जो घाव मिल रहा, कब तक उसे कुरेदोगे।
मंदिर कभी और मस्जिद में, कब तक मन को तोलोगे।
ईश्वर अल्ला नाम एक ही, बोलो क्यू हो भूल रहे।
धर्म तराजू से भारत की, संतानों को तोल रहे।
तेज सियासी चाकू से, मानव मन को जो काटा है।
बनकर ठेकेदार धर्म के, तन मन को जो बांटा हैं।
काट, छांट और बांट तुम्हारी हिंदुस्तान समझता है।
चाल तुम्हारी जो भी है बस भारत देश उलझता है।
बोलो इस उलझन को, कैसे सुलझाओगे यार यहां।
आने वाली पीढ़ी पर, तुम बनते हो क्यूं भार यहां।
कृष्ण, राम ने मानवता की, रक्षा का संदेश दिया।
नानक और मुहम्मद ने भी, नवजीवन परिवेश दिया।
इन संदेशों को भूले हो, कब तक तुम रह पाओगे।  
हिंदुस्तानी जनता को, बोलो कब तक भरमाओगे।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:44pm

आईना दिखाती है तेरी गज़ल 

दिल को लुभाती है तेरी गज़ल 

बांटते रहे धर्म-नीति के प्याले 

फिर से मिलाती है तेरी गज़ल 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 15, 2014 at 9:35pm

बहुत सुन्दर और सच्ची तस्वीर मधुशाला के तर्ज पर!
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 12:23pm

अच्छी रचना है i

कोई पढ़वाता नमाज है, कोई जपवाता माला।
भारत और इंडिया का, देखो यह है गड़बड़झाला।
धर्म, जाति, मक्कारी की, हाला उसने जो पी ली है।
मानवता को नोंच, नोंचकर, लगा रहा मुंह पर ताला।

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