For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितने अरमान गूंजते थे जुगनुओं से रास्तों में

वक़्त की अठखेलियों से फिर जनाज़े हाय निकले;

एक पिंजरे में कुरेदा तो अनोखे भाव निकले;

कितने अरमान गूंजते थे जुगनुओं से रास्तों में;

सुर्ख थे नींदों में सारे जब जगा तो स्याह निकले.

 

जब जलज की पंखुड़ी पर अश्रु थामे तुम खड़े थे;

दुःख तो थोड़े थे हमारे किन्तु तुम कितने बड़े थे;

नीर था चारों तरफ फिर नाव क्यों चलती नहीं थी;

हम किनारे पर डुबे थे तुम तो दरिया पार निकले.

 

सोचता हूँ इस भयावह चित्र में अंकित कहाँ हूँ;

इस अनिश्चित दौर के उपवास में सिंचित कहाँ हूँ;

कर रहा था कोशिशें रिश्ते सजाकर रख सकूँ मैं;

मुट्ठियों से छिटके मोती हाथ में बस तार निकले.

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by neeraj tripathi on March 2, 2011 at 3:01pm
धन्यवाद गणेशजी  ...आप जनों के उत्साहवर्धन से कुछ तुकबंदी कर लेता हूँ...कुछ पंक्तियाँ कभी कभार सटीक बैठ जाती हैं.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2011 at 2:52pm

कर रहा था कोशिशें रिश्ते सजाकर रख सकूँ मैं;

मुट्ठियों से छिटके मोती हाथ में बस तार निकले....

 

वाह वाह भाई नीरज जी इन दो पक्तियों में तो आपने पूरी कविता का निचोड़ ही रख दिया है | सुंदर भाव समेटे एक खुबसूरत रचना , बधाई कुबूल कीजिये भाई |

Comment by neeraj tripathi on March 2, 2011 at 1:23pm
That's so true...thanks vandana ji
Comment by neeraj tripathi on March 2, 2011 at 12:49pm
Thanks Rashmiji :-)
Comment by rashmi prabha on March 2, 2011 at 12:44pm

कितने अरमान गूंजते थे जुगनुओं से रास्तों में;

सुर्ख थे नींदों में सारे जब जगा तो स्याह निकले.

 वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service