For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सहारा मिल गया होगा

1222 1222 1222 1222

झुकी पलकों कि उल्फत का इशारा मिल गया होगा ।
कि सहरा को समंदर का नज़ारा मिल गया होगा ।

अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।

घटाओं की अँधेरी रात में उम्मीद जागी है ,
गगन में टिमटिमाता इक सितारा मिल गया होगा ।

सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।

निगाहों ने कहा मुझ से कि सूरत सी नही सूरत ,
फलक से चाँद धरती पर उतारा मिल गया होगा ।

मियादी का समय बीता नहीं आया अभी तक वो ,
कि कोई हमनवा मुझ से पियारा मिल गया होगा ।

भँवर तूफ़ान तो मचले मगर कश्ती सलामत है ,
मुझे मालिक  कि रहमत का सहारा मिल गया होगा ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on August 13, 2014 at 11:00am
'सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा । "
बधाई नीरजजी | हर शे'र सवासेर है | बहुत बेहतरीन उतारा |
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 13, 2014 at 9:28am

बहुत खूब!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:39am

अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।

बहुत खूब कहा आ० नीरज जी , हार्दिक बधाई .

Comment by Meena Pathak on August 11, 2014 at 8:23pm

बहुत खूब ..बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:31pm

बहुत सुन्दर कहा आपने i आपको बधाई i

Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 12:28pm

अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।

सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।///////वाह भाई वाह। …।  बहुत बहुत बधाई 

Comment by वेदिका on August 11, 2014 at 11:06am
झुकी पलकों कि उल्फत का इशारा मिल गया होगा ।
कि सहरा को समंदर का नज़ारा मिल गया होगा ।
वाह बहुत प्यारा मतला हुआ है।

अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।// बेहतरीन शेअर हुआ है

शुभकामनायें प्रेषित हैं आदरणीय नीरज जी!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2014 at 10:30am

आदरणीय नीरज प्रेम भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , वाह ! मज़ा आगया |

झुकी पलकों कि उल्फत का इशारा मिल गया होगा ।
कि सहरा को समंदर का नज़ारा मिल गया होगा ।

अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।

सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।

भँवर तूफ़ान तो मचले मगर कश्ती सलामत है ,
मुझे मालिक  कि रहमत का सहारा मिल गया होगा ।     इन अश'आर के लिए दिली बधाई क़ुबूल करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service