For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यूं ही खामोश रहो ...

जब कभी मेरी बात चले 
ख़्वाब में भी कोई ज़िक्र चले 
मेरे हमदम मेरे हमराज़ 
यूं ही खामोश रहो 
शायद ही कभी 
ठिठुरते हुए बिस्तर पे 
कभी चांदनी बरसे 
या फिर झील के ठहरे हुए पानी में 
कभी लहरे मचले 
जब कभी आँखों के समंदर में 
कोई चाँद उतरे 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो ... 
जब कभी चाँद जले 
मेरी उम्मीद मेरी हसरत 
परवान चढ़े .. 
और फिर गीत कोई 
सूखे लबो को 
छूकर निकले 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो ..
बुझ गई रात दिन भी मिला 
टुकडो में 
जख्म रिसते रहे अपनो से मिले 
फिकरो में 
जब कभी आस जगे ....
और कहीं ओस गिरे 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो ... 
चन्द लम्हों के ये सिक्के 
जो थी वस्ल की रात 
मेरी मुट्ठी में खनक उनकी 
यूं ही कैद रहे 
जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले 
और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ 
सावन निकले 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो ... गुल सारिका ...

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 8:46pm

गुल सारिका जी, अच्छी रचना है , कृपया बधाई स्वीकार कर लेंगी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2012 at 3:50pm

चन्द लम्हों के ये सिक्के 
जो थी वस्ल की रात 
मेरी मुट्ठी में खनक उनकी 
यूं ही कैद रहे 
जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले 
और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ 
सावन निकले 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो .-------बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सुन्दर जज्बातों की लडियां पिरोती हुई रचना बहुत अच्छी  लगी बधाई गुल सारिका जी 

Comment by Arun Sri on November 8, 2012 at 11:51am

भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ! कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी बन पड़ी हैं ! बिम्ब और प्रतीक प्रभावित कर रहे  हैं ! बधाई और शुभकामनाएँ !

Comment by राजेश 'मृदु' on November 5, 2012 at 12:54pm

सुंदर रचना के लिए बधाई

Comment by Gul Sarika Thakur on November 5, 2012 at 11:42am

bahut bahut shukriya aap sabhee ka ... anugrihit hun ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 4, 2012 at 3:15pm

बहुत कोमल भावों को अभिव्यक्ति मिली है, हार्दिक बधाई इस रचना हेतु गुल सारिका जी 

Comment by seema agrawal on November 4, 2012 at 10:57am

चन्द लम्हों के ये सिक्के 
जो थी वस्ल की रात 
मेरी मुट्ठी में खनक उनकी 
यूं ही कैद रहे 
जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले 
और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ 
सावन निकले 
मेरे हमदम मेरे हमराज 
यूं ही खामोश रहो.....बहुत सुन्दर .....इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए बधाई गुल सारिका जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2012 at 7:52pm

मेरी उम्मीद मेरी हसरत परवान चढ़े .. और फिर गीत कोई सूखे लबो को छूकर निकले 

हमारी शुभकामनाए आपके साथ है, प्रभु आपकी सुनले । रचना पसंद आई, बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 3, 2012 at 9:21am

गुल सारिका ठाकुर..  ’यूँ ही खामोश रहो’ आपकी प्रथम प्रविष्टि मेरी दृष्टि में आयी है. इस मंच पर स्वागत करता हूँ.

रचना के कुछ बिम्ब आशान्वित कर रहे हैं.  हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service