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कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

 

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

 

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

 

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

 

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

 

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥

 

हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,

जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥

  •  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment

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Comment by राज लाली बटाला on August 30, 2013 at 11:06am
khoob
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:19pm

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

सत्य 

बधाई सर जी 

 

Comment by अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ on August 27, 2012 at 9:30pm

हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,

जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥

बोलता हुआ शे’र है ’सूरज’ जी, बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:16pm

वाह डा. साहब गज़ब ढा दिया आपने , बहुत-२ बधाई.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 12:21pm

डॉ.सूर्या बाली जी, बढ़िया गज़ल

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥

इन अश'आरों ने गजब ही ढा दिया, जिंदगी का फलसफा भी, हकीकत भी, भई वाह !!!!!!!!!

न तोड़ो दिल किसी का यार दिन हैं चार जीवन के

कभी अनजानी गलती से भी नाता टूट जाता है ||

नहीं जुड़ता, अगर जुड़ता भी है तो गाँठ पड़ती है

हो कितना भी बुलंदी पर , सितारा टूट जाता है ||

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 11:48pm

बाली जी

          सादर नमस्कार,

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

हर पक्ष को बखूबी पेश किया है. बहुत बहुत बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 4, 2012 at 7:33pm

वाह डॉ. साहब.. क्या ख़ूब कलाम पेश किया आपने! अदब का शानदार मुज़ाहिरा रहा यह! बधाई आपको!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 4, 2012 at 8:43am

//कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

 

हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,

मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥//

आदरणीय डॉ० सूर्या बाली “सूरज” साहब, मतले से लेकर मकते तक के अशआर ने हृदय को स्पर्श किया है ..............बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2012 at 1:18am

बहुत ही ग़ज़ब का मतला है डॉक्टर साहब. किसी लम्हे में सदियों के होने का भरोसा होना जिस आत्मीयता की निशानी है उसके दरकने के गिर्द आपके कई भाव दिलकश बन पड़े हैं.

इसी उठान पर ये शेर है --

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर भूखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥

कुछ क्षणों की रौद्रता को किस गहराई से महसूस किया है आपने और मौजूं बना डाला है, वाह !

बहुत-बहुत बधाई इस संवेदना के लिये.. .  बहुत खूब !!

Comment by satish mapatpuri on August 4, 2012 at 1:11am

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

सुभान अल्लाह ......... बेहतरीन ..... खुबसूरत ख्याल .... दाद कुबूल फरमाएं डॉ .सूरज साहेब

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