For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपका यूँ मुस्कुराना क्यों मुझे अच्छा लगा...

एक ग़ज़ल

आपका यूँ मुस्कुराना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
एक होना, डूब जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

जब अकेले हैं मिले, दीवानगी बढ़ती गई,
सिर हिलाना, भाग जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

हाथ में मेरे, कलाई जब भी आई आपकी,
कसमसाना, फिर छुड़ाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

आँखों में काज़ल लगाकर माथे पे बिन्दी सजा,
बालों में कंघी लगाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

आँखों से इज़हार दिल की बात जब होने लगी,
आपका नज़रें चुराना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

सीने से लगते ही जब शिक़वे-गिले मिटने लगे,
बड़बड़ाना, रूठ जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

खुशियों में ‘अफ़सोस’ की बातें नहीं होतीं कभी,
हॅंसते-हॅंसते ग़म उठाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

 

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 25, 2011 at 6:56pm

आदरणीय अफ़सोससाहब,   अव्वल तो, मुआफ़ी, कि कैसे अबतक आपकी इस उम्दा ग़ज़ल से महरूम रहा. किसशे’र को हासिल कहूँ ?! या, किस एक पर खुल कर दाद दूँ ..! शोख और अलमस्त अदायग़ी का मुज़ाहिरा करते इन सभी अश’आर पर मेरी दिली दाद कुबूल फ़रमायें.

आदाब है साहब.

 

Comment by वीनस केसरी on November 24, 2011 at 9:40pm

आपका यूँ मुस्कुराना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
एक होना, डूब जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?

वाह वा,,,, क्या कहने

मतला खूब पसंद आया
एक होना, डूब जाना...
कमाल का सानी है .... बहुत गहरा 

लाजवाब गज़ल पढवाने के लिए धन्यवाद

Comment by Abhinav Arun on November 24, 2011 at 7:49pm
 बहुत खूब अफ़सोस जी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक मुबारकवाद , सभी शेर और विशेष कर ये शेर ख़ास पसंद आया -

खुशियों में ‘अफ़सोस’ की बातें नहीं होतीं कभी,
हॅंसते-हॅंसते ग़म उठाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 24, 2011 at 1:27pm

मतले से लेकर मकते तक बहुत ही खूबसूरत अश'आर कहे हैं मोहतरम अफ़सोस साहिब ! रिवायती ग़ज़ल का बेहतरीन नमूना पेश किया है आपने ! किसी एक शे'र को भी हासिल-ए-ग़ज़ल कहना मुश्किल हो रहा है, लेकिन इस शे'र में जो शोखी है वो सीधे दिल में उतर गई:

//हाथ में मेरे, कलाई जब भी आई आपकी,

कसमसाना, फिर छुड़ाना क्यों मुझे अच्छा लगा ? //

बहरहाल इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएं !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
13 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
23 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
31 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
40 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service