For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कफनचोर

छोड़ा ही क्या है इसने?’

घर के पिछवाड़े तक की जमीन बेच दी।

भुवन के घर की यारी ऐसे ही फलती है।

भगेलू की भौजाई से रिश्ता था इसका।

मरने लगा तो बहन के घर इलाज कराने गया था।

शीला मरा पड़ा था और गाँव के मर्द-औरत यही सब बतिया रहे थे। अर्थी तैयार हुई।लाश उसपर रख दी गई।अब अर्थी उठने ही वाली थी कि सब लोग चौंक गए। ‘ठहरो। अर्थी नहीं उठेगी।भार्गव ज़ोर से चिल्लाया। साथ में उसका छोटा बेटा चम्पक भी था।

क्या हुआ?’ शीला के घरवालों ने पूछा।

देखो।चम्पक ने धवल कागज के एक पन्ने को हवा में लहराया। बोला, ‘दो लाख लिए थे इसने। तीन साल हो गए। तीस हजार लौटाए इसने। एक लाख सत्तर हजार बकाया है। दो, तब लाश उठाओ।

दो-तीन लोगों ने कागज का वह टुकड़ा झपटा। पढ़ने लगे, ‘तीस हजार ....पचास हजार........सत्तर हजार.....आदि ...वापस तीस हजार बस।तीस हजार रुपए वापसी की तारीख तीन साल पहले की थी। बाकी तारीखें साल-दो साल पहले की।

अब भार्गव और उसका बेटा सवालों के घेरे में थे। लोगों ने पूछा, ‘इसने पहले कर्ज लिए?’

हाँ।बाप-बेटा दोनों एकबारगी ही बोल गए।

बाद में रुपए तीस हजार इसने लौटा दिये?’

हाँ जी हाँ।भार्गव गुस्से में बोला।

तो तीस हजार की तारीख पहले की कैसे है, रे कमीने?’ एक साथ ढेर सारे लोग बोल पड़े। बाप-बेटे को काटो तो खून नहीं। मुँह छिपाकर भागे।

कफनचोर हैं स्सा.....ल्ले।यही आवाज गूँजी और शीला की अर्थी उठ गई।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 319

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 10, 2022 at 9:26am

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेंद्र  जी। नमन। जहाँ तक तिथियों का सवाल है,वह मुहल्ले में सबको विदित है कि जब शीला के मरने कि खबर फैली ,तो आनन-फानन में बाप-बेटे ने एक नए पन्ने पर यह सब कुछ लिखा। देखने पर लोग छींटाकशी करने लगे कि तीन साल पहले लिखा हुआ कागज इतना ताजा कैसे? जरा भी मुड़ा तक नहीं है। तब उनलोगों ने जाकर उस पन्ने को मुड़ा-तुड़ा बनाया,गंदा किया और लेकर घूमने लगे। वे शीला के पड़ोसी हैं,कोई सेठ-साहूकार नहीं। 

Comment by Mahendra Kumar on November 7, 2022 at 8:40pm

आदरणीय मनन जी, लघुकथा के भाव अच्छे हैं जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है। लोगों के साथ ठगी करने वाले बहुत शातिर होते हैं। कर्ज़ देने की तिथि बाद में और लौटाने की तिथि वे पहले लिखेंगे, इतनी छोटी ग़लती असम्भव भले न सही पर अस्वाभाविक ज़रूर लगती है। उम्मीद है आप विचार करेंगे। 

Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2022 at 8:34pm

आपका आभार आदरणीय।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 7:05pm

बढ़िया सामाजिक कटाक्ष किया है लघुकथा में आदरणीय... बधाई

Comment by Manan Kumar singh on October 27, 2022 at 8:43am

आपका आभार आ.लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2022 at 6:40am

आ. भाई मनन जी , सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service