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मीर तक काश कभी दर्द का मंज़र पहुँचे (११२ )

ग़ज़ल (2122 1122 1122 22 /112 )

.
मीर तक काश कभी दर्द का मंज़र पहुँचे
और मज़मून-ए-शिकायत की झलक भर पहुँचे
**
आज किस हाल में है देख रिआया रहती
ग़म ज़रा उसका किसी दिल के तो अंदर पहुँचे
**
सिर्फ़ बातें ही किया करते गुहर लाने हैं
क्या कभी आप तह-ए-आब-ए-समंदर पहुँचे
**
जो घरों में हैं दुआ है कि सभी शाद रहें
और बिछड़ा है जो भटका है जो वो घर पहुँचे
**
हमने पैगाम-ए-मुहब्बत है रवाना तो किया
बस दुआ कीजै सलामत वो कबूतर पहुँचे
**
हमने उल्फ़त की रखी थी कभी बुनियाद-ए-मकाँ
उनकी ज़ानिब से मगर हिज्र के पत्थर पहुँचे
**
हम तो तैयार हैं पलकों पे उन्हें रखने को
कोई ख़ुशियों से कहे तो सही दर पर पहुँचे
**
ये रिवायत है कि प्यासा ही कुएँ तक जाता
क्या कभी देखा कि दरिया पे समंदर पहुँचे
**
तिश्नगी आँखों से पीने से मिटे कैसे 'तुरंत'
जब लबों तक ही नहीं बादा का साग़र पहुँचे
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 21, 2020 at 4:33pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , आदाब , 

आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है  | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on June 21, 2020 at 3:05pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 20, 2020 at 11:41am

आदरणीय अजय गुप्ता  जी , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on June 20, 2020 at 11:27am

बहुत खूब गज़ल हुई है जनाब। वाह वाह। लाजलाजवाब ब

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