For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

असाधारण सवाल

यह असाधारण नहीं है क्या

कि डूबती संध्या में

ज़िन्दगी को राह में रोक कर

हार कर, रुक कर

पूछना उससे

मानव-मुक्ति के साधन

या पथहीन दिशा की परिभाषा

असाधारण यह भी नहीं है कि

ज़िन्दगी के पाँच-एक वर्ष छिपाते

भीगते-से लोचन में अभी भी हो अवशेष

नूतन आशा का संचार

चिर-साध हो जीवन की

सच्चे स्नेह की सुकुमार अभिलाषा

पर असाधारण है, बैठे-बैठे

बीत गए अधूरे सपनों को समेटते

सूरज के सरक जाने के बाद

दर्द भरे अनुभवों की पिटारी खोल

बुद्धि, हृदय और विवेक के ताल-मेल में

लौट आना स्वप्न लोक-सा

कुछ और जी लेने का अथक उत्साह

इतना, कि हाथ बढ़ाया तो मानो

क्षितिज को छू आया

मालूम है, मालूम है मुझको

कहाँ से, कैसे उत्पन्न हुआ है यह

नव उन्माद से प्रोत्साहित

नव स्वप्न का मधुरम उत्साह

परि-लोक-सा स्नेह का मधु-आह्वान

पत्थरों की राह पर पत्थरों के बीच

उग आई है बेमौसम नई घास 

प्रिय के मात्र मधुरतम स्नेह-संस्पर्ष से

रात रानी के नशे-सी आजकल

बढ़ गई है अभी चलते जाने की चाह

है उल्लसित मधुर आराधना

पुराने धूलभरे तानपुरे के तारों से भी

आ रही है पथ-दर्शक मृदु झंकार

मिला जब से इस कवि-मन को, प्रिय

तुम्हारे प्यार भरे आँचल का उपहार

                   -----

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 18, 2020 at 7:02pm

आपका हार्दिक आभार, मित्र नरेन्द्रसिंह जी

Comment by narendrasinh chauhan on April 10, 2020 at 1:45pm

खूब सुंदर रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
55 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212    1122    1212    22 /  112 कि मर गए कहीं अहसास…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय अजय भाई , आपका बहुत शुक्रिया "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीया रिचा जी आपका बहुत आभार "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"तरही ग़ज़ल  का आयोजन जो पहले  १०० - २००  पेज  तक पहुँच जाता था उसका  ८ -१०…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरर्नीय नीलेश भाई , आपने वो सब कुछ कह दिया जो मेरे मन में  थी , आपसे सहमत होते हुए एक…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service