जी आप कुछ कुछ ठीक कह रहे हैं त्रुटी वश ये न की जगह ना लिखा गया 'केवल दो किलोमीटर पीछे हुए एक्सीडेंट का वो बेचारा पेशेंट साइकिल वाला था न और ये कार वाला, क्या ये अंतर मैं नहीं समझती'----ये इस तरह लिखा था मेरी मूल लघु कथा में ----हम दैनिक बोलचाल में न शब्द का इस्तेमाल ? के साथ करते हैं इसमें न के बाद ? मार्क लगाना भूल गई बहुत बहुत आभार इस और ध्यान दिलाने के लिए
राज़ साहब आपने मुझ नाचीज़ की भी रचना पढ़ी मैं धन्य हो गया, आपकी दाद मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है और कुछ और अच्छा लिखने की प्रेरणा अब मुझे मिलती रहेगी.... आपका तलबगार प्रमेन्द्र डाबरे
At 10:24am on September 21, 2012, लोकेश सिंह said…
राज भाई तहे दिल से मेरा शुकराना स्वीकार करे ,आपके स्नेहिल वचन मुझे और अच्छे काव्य की रचना की प्रेरणा देंगे ,सराहना के लिए बहुत -बहुत साधुवाद ......लोकेश सिंह
राज़ साहेब, आप नये हैं ये मुझे मालूम नहीं था क्योंकि मैं ख़ुद यहाँ नया हूँ......हा हा हा हा ....लेकिन आपसे पहली मुलाक़ात अच्छी रही........मुझे इस महफ़िल में बहुत प्यार और मुहब्बत से नवाज़ा गया है और आप भी यहाँ के दोस्ताना माहौल में रस से सराबोर हो जायेंगे . ऐसा मेरा यक़ीन है
___ओ बी ओ है ही ऐसी जगह.................आपका तहेदिल से इस्तेकबाल है भाई साहेब !
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राज़ नवादवी's Comments
Comment Wall (14 comments)
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आदाब
बहुत उम्दा ग़ज़ल की बधाइयां स्वीकारें. आशा करता हूँ कि भविष्य में भी ऐसी ही रचनाओं को पढ़ने का अवसर प्राप्त होता रहेगा.
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स परिवार की ओर से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.
सदस्य कार्यकारिणीrajesh kumari said…
जी आप कुछ कुछ ठीक कह रहे हैं त्रुटी वश ये न की जगह ना लिखा गया 'केवल दो किलोमीटर पीछे हुए एक्सीडेंट का वो बेचारा पेशेंट साइकिल वाला था न और ये कार वाला, क्या ये अंतर मैं नहीं समझती'----ये इस तरह लिखा था मेरी मूल लघु कथा में ----हम दैनिक बोलचाल में न शब्द का इस्तेमाल ? के साथ करते हैं इसमें न के बाद ? मार्क लगाना भूल गई बहुत बहुत आभार इस और ध्यान दिलाने के लिए
सदस्य कार्यकारिणीrajesh kumari said…
सादर आभार तहे दिल से शुक्रिया ग़ज़ल आपको पसंद आई राज़ जी
welcome sir
aapki rachnaen behatreen hain
मुझको तिरी बेजारियों का कुछ गिला नहीं
मेरी भी ज़िंदगी अना दिखला के रह गई
मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद
तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई
बहुत ही उम्दा गज़ल है राज़ भाई बहुत ख़ूब
राज़ साहब आपने मुझ नाचीज़ की भी रचना पढ़ी मैं धन्य हो गया, आपकी दाद मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है और कुछ और अच्छा लिखने की प्रेरणा अब मुझे मिलती रहेगी.... आपका तलबगार प्रमेन्द्र डाबरे
राज भाई तहे दिल से मेरा शुकराना स्वीकार करे ,आपके स्नेहिल वचन मुझे और अच्छे काव्य की रचना की प्रेरणा देंगे ,सराहना के लिए बहुत -बहुत साधुवाद ......लोकेश सिंह
राज़ साहेब, आप नये हैं ये मुझे मालूम नहीं था क्योंकि मैं ख़ुद यहाँ नया हूँ......हा हा हा हा ....लेकिन आपसे पहली मुलाक़ात अच्छी रही........मुझे इस महफ़िल में बहुत प्यार और मुहब्बत से नवाज़ा गया है और आप भी यहाँ के दोस्ताना माहौल में रस से सराबोर हो जायेंगे . ऐसा मेरा यक़ीन है
___ओ बी ओ है ही ऐसी जगह.................आपका तहेदिल से इस्तेकबाल है भाई साहेब !
वाह वाह वाह वाह
निहाल कर दिया साहेब
___जनाब राज़ नवादवी जी.........गज़ब है !
___मुबारक हो ये उम्दा शाइरी........
aapka dili isteqbaal hai janaab !
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