For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये कैसी, अनहोनी होई |

दिल रोया, पर आँख ना रोई ||

चाहूँ लाख, जगाना उसको |

कम करे, तदबीर ना कोई || 

सब बेचारा, कह देते हैं |

जो लिखा है , होगा सोई ||

याद नहीं है, क्या बोया था |

दिल की बस्ती, बंज़र होई ||

अँधेरा है, कैसे ढूँढूँ |

यारो, अपनी किस्मत खोई ||

तन्हाई अच्छी, लगती है |

तन्हाई सा, मीत ना कोई ||

बन्ज़ारों सा, घूम रहा हूँ |

अपना पक्का, ठौर, ना कोई ||

कब अपने से, मिल पाऊँगा |

कब मेरा भी, होगा कोई ||

अब तक उससे, मिल ना पाया |

जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||

वक़्त ज़ख्म दे, वक़्त ही मरहम |

वक़्त रखे, बीमार ना कोई ||

सुन रक्खा है, मीठा बोलो |

लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||

जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |

कभी, कहीं, बरसात ना रोई ||  

Views: 452

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2012 at 10:40am

//तन्हाई अच्छी, लगती है |

तन्हाई सा, मीत ना कोई ||//

आदरणीय शशि मेहरा जी, बहुत ही प्यारी और अर्थपूर्ण रचना, एक एक बंद गहरे भओं को समेटे हुए है, बहुत दिनों बाद आपका ओ बी ओ पर आना हुआ, इस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई , उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |

Comment by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 7:48pm

अब तक उससे, मिल ना पाया |

जिसकी खातिर, सुध-बुध खोई ||.... Sirji Behad hi Shaandaar.. Behad hi Khoobsurat Lines.... Meri tarf se Badhai Swikaar karein...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2012 at 5:37pm

सुन रक्खा है, मीठा बोलो |

लफ़्ज़ों सी, तलवार ना कोई ||

जैसे रोता, ‘शशि’ को देखा |

कभी, कहीं, बरसात ना रोई ||  दिल को छूती हुई मार्मिक रचना बहुत बधाई आपको 

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 21, 2012 at 12:30pm

आदरणीय शशि मेहरा जी  सादर बधाई

बहुत ही बढ़िया लगी

दिल रोया  पर आँख न रोई... गहराई है 

याद नहीं है, क्या बोया था |

दिल की बस्ती, बंज़र होई ||....बहुत ही जोरदार है ..दिल के बंजर होने कि बात दिल को छू लिया 

तन्हाई सा मीत ना कोई ......सटीक कथन 

आदरणीय बेहद मार्मिक मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
16 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service