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कलयुग हैं , कलियुगी होना चाहिए ---डॉo विजय शंकर

आदमी को समय के साथ चलना चाहिए
कलयुग में हैं तो कलियुगी होना चाहिये ॥
चालाकियां होश्यारियां हुनर सब अपने लिए हैं
काम दूसरे का हो तो मासूम बन जाना चाहिए ॥
अपने सब काम क़ानून को ताख पर रख कर कर लें
दूसरे को सारे नियम क़ानून बताना चाहिए ॥
बात किसी की कभी काटनी नहीं चाहिए
काम किसी का भी हो करना नहीं चाहिए ॥
कहना किसी का भी हो मोड़ना नहीं चाहिए
तिनका किसी के लिए भी तोड़ना नही चाहिए ॥
आदमी को समय के साथ साथ चलना चाहिए
कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी होना चाहये ॥
हमें अपने युग का सम्मान का करना चाहिए
कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी होना चाहिए॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 9:04am
आदरणीय सुश्री महिमा जी , आपका आभार एवं धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 9:02am
प्रिय मिथिलेश जी , आपका आभार एवं धन्यवाद। टंकण की त्रुटियों को सही कर दिया, पुनः आभार, सादर।
Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 9:01am

वाह ! वाह ! क्या गजब बात कही है आपने कलयुगी आदमी की ! आदमी को समय के साथ चलना चाहिए

कलयुग में हैं तो कलियुगी होना चाहिये ॥.....अद्भुत !

काम दूसरे का हो तो मासूम बन जाना चाहिए ॥........ ये मासूमियत भी बडी़ कमाल की है । क्या खूब कटाक्ष हुई है ... पढकर दंग हो गये । बधाई हो आदरणीय डा. विजय शंकर जी ।

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 8:51am
सच है,हम सब अपने अपने ढंग से समय के साथ ही तो चल रहे हैं , बहुत तीखी ,पर सच्चाई बयां करती रचना बधाई आपको आदरणीय डॉ विजय शंकर जी
Comment by MAHIMA SHREE on August 24, 2015 at 9:27pm

अच्छी रचना है सर बधाई  आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 24, 2015 at 12:06pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर इस कलयुगी जमाने पर व्यंग्य करती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई. निवेदन है कि रचना में टंकण त्रुटियों को देख लीजियेगा.

कृपया ध्यान दे...

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