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सोशल-सिक्योरिटी -- डॉo विजय शंकर

  

  बच्चा करीब छह महीने का हुआ था ,लेटे - लेटे इधर उधर देखता और रोने लगता।  माँ - बाप उसे बहलाने की कोशिश करते पर वह चुप नहीं होता।  परेशान माँ - बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए।  डॉक्टर ने उसे देखा और कहा, बच्चा बिलकुल ठीक है , इसे स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई समस्या नहीं है।  पर बच्चा था कि शांत ही नहीं होता , जो खिलौना दिया जाता उसे फेंक देता, गुस्सा दिखाता और रोने रोने को हो जाता। 


   परेशान माँ - बाप उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले गये. उसने परीक्षण किया, कहा बच्चा बिलकुल ठीक है , आपने इसे इसके पेपर्स दिखाए ?
कैसे पेपर्स ? हैरान माँ ने पूछा।  जन्म प्रमाण-पात्र , इंश्योरेंसपॉलिसी , हेल्थ - कार्ड , डायेट - चार्ट , वैक्सीनेशन - कार्ड वगैरा वगैरा ,
जी नहीं , बच्चा वो सब क्या करेगा ? माँ  को हैरानी हुयी  , पिता भी थोड़े असमंजस में दिखे, पर बच्चा बड़े ध्यान से सारी बातें सुन रहा था। 
ये सारे पेपर्स हैं आपके पास, ? मनोवैज्ञानिक ने पूछा। 
जी हैं , सब हैं.
तो बस , घर जाइए , बच्चे को सब दिखाइए , बच्चे को सोशल- सिक्योरिटी चाहिए , बच्चा पेपर्स देख लेगा , फिर नहीं रोयेगा.


 बच्चा वैसे ही सारी बातें सुन कर चुप हो गया था , मान - बापु से घर लाये , सारे डॉक्युमेंट्स उसे दिखाए , बच्चे ने वो मुस्कान फेंकी कि माँ  दौड़ कर गयी और पापा की एक करोड़ की बीमा पॉलसी भी ले आई, और बच्चे को दिखाने लगी , बच्च ने जोर की किलकारी मारी और एक जोर की लात बॉल को मारी कि वह सीधे छत से टकराई..


अब बच्चा बिलकुल नहीं रोता, कोई रुलाये तो भी नहीं। 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 7:48pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , लघु-कथा पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से बहुत आभार। आज के जीवन में कागज ( प्रमाण-पत्रों ) और नवीनी करन का महत्त्व और उन्हीं का पहचान और अस्तित्व बन जाना , मशीन ( कंप्यूटर ) का उसके अभाव में आगे न बढ़ना , सब कुछ त्रासद सा होता जा रहा है. बस उसी पर हल्का सा लिखा है. आपकी स्वीकृति एवं शुभकामनाओं हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 3:03am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, ये रचना कमाल हुई है. लघुकथा की ऐसी पैनी व्यंग्य शैली, चकित हूँ इस लघुकथा को पढ़कर. लघुकथा में ऐसा तीखा व्यंग्य परसाई जी की रचनाओं में ही देखने को मिलता है. उसी पीढ़ी की एक सशक्त रचना है यह लघुकथा. सामजिक सुरक्षा के प्रभाव और आयाम को जिस दृष्टिकोण से आपने प्रस्तुत किया है, वह बिलकुल नया और अनछुआ है. लघुकथा की बिलकुल विशिष्ट शैली के दर्शन कराये है आपने. कहना न होगा कि इस मंच पर प्रस्तुत ये अपने तरह की विशिष्ट लघुकथा है जो न केवल पाठक को गहरे तक प्रभावित कर रही है बल्कि पाठक को एक नई संवेदनशील अनुभूति से भी अवगत करा रही है. इस विशिष्ट प्रस्तुति हेतु धन्यवाद. नमन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:29pm
आदरणीय सौरभ पांडे जी, लघु-कथा का इतना सुन्दर विवेचन , आपका बहुत बहुत आभार, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2015 at 12:21am

आदरणीय विजयशंकरजी, आपकी संवेदनशीलता इस मंच पर कई बार बेजोड़ अभिव्यक्तियाँ साझा कर चुकी है. आपकी प्रस्तुत रचना व्यंग्य अभिव्यक्ति का अत्युत्तम उदाहरण है. आज व्यावसायिकता और स्वार्थपरक सोच के वशीभूत मानव जिस राह पर चल पड़ा है वहाँ जैसे भावनाओं की कोई अहमीयत ही नहीं है. इस तथ्य को आपकी प्रस्तुत रचना जिस तरह से स्वर दे रही है वह चकित कर रहा है.
वस्तुतः ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव के आयोजन में प्रदत्त चित्र से ऐसे भाव भी निस्सृत हो सकते हैं, यह जानना रोमांचित भी कर रहा है.
आपकी रचनाधर्मिता और विशिष्ट वैचारिकता केलिए मेरा पाठक-मन आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा है. सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2015 at 3:16pm

आभार आपका,आपको लघु -कथा पसंद आई,  बधाई हेतु धन्यवाद आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा  जी, सादर। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2015 at 3:14pm

आपको लघु -कथा पसंद आई, आभार आपका, धन्यवाद आदरणीय विनय कुमार सिंह जी, सादर।  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 2:44pm

आदरणीय विजय सर ..बहुत ही रोचक तरीके से आपने एक जरूरी बात पाठकों को समझा दी ..इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 2:43pm

बहुत अलग तरीके से अपनी बात को रखा है आपने इस लघुकथा के माध्यम से , बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 16, 2015 at 2:40pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी  ,लघु - कथा आपको अच्छी लगी , आपकी प्रसश्ती के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं आपकी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद। सादर. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 16, 2015 at 2:39pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी  ,लघु - कथा आपको अच्छी लगी ,   आपका बहुत बहुत आभार एवं आपकी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद। सादर. 

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