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जनतंत्र पूर्ण हो जाएगा --- डॉ o विजय शंकर

ये हुकूमतें , ये शान,
ये ऐशो -आराम ,
किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,
जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,
उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥

बत्तीस रूपये प्रतिदिन में
जिंदगी गुजारने वाले,
किसके बनाये हुए हैं ,
इनकी सोच , इन्होंने ही
एक एक वोट जोड़कर ,
तुझ जैसों को राजा बनाया है ||

महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक
बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,
ख्याल कर ,
ये कब से तुझको
इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,
इनका तो ख्याल कर ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 27, 2015 at 9:03am

आदरणीय डॉ. विजय शंकरजी, आपकी इस रचना के भाव ने गौरवान्वित किया ही अपने देश में आमजन के प्रति व्याप गयी लापरवाही कुछ और चुभती सी लगी. गणतंत्र ही उस आमजन को समृद्ध नागरिक का दर्ज़ा देता है. इस गणतंत्र का अर्थ ही यही था कि आमजन का उत्थान हो. उसे भरपूर अवसर मिले. इस कर्तव्य के परिपालन के क्रम में अभी बहुत कुछ करना है.
सादर बधाइयाँ आपकी इस सुगठित तथा सचेत भावाभिव्यक्ति के लिए.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 8:16am

ऐसी हक़ीकत जिसे हर ऊपर वालों को जानना , महसूस करना चाहिये । बहुत सुन्दर रचना , आदरणीय विजय भाई , बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 11:11pm
आदरणीय कांता रॉय जी , मानना पड़ेगा , प्रतिक्रिया की पंक्तियाँ रचना की पंक्तियों से कहीं अधिक सुन्दर हैं, भाव पूर्ण हैं, भाव मूल्यवान हैं, बहुत बहुत आभार। यह भाव जन जन तक हो, तभी कुछ बात बने. आपकी सद्भावनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सादर।
Comment by kanta roy on January 26, 2015 at 10:34pm
" जिस दिन ये यह एहसास हो जायेगा
उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जायेगा "....जागृति के स्वर को पहुँचाता हुआ मन के आँगन में ... कवि का देश के लिए चिंतित मन के भाव । अति सुंदर
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 9:48pm
प्रिय मिथिलेश जी, आभार, बधाई के लिए धन्यवाद। गणतंत्र दिवस शुभ हो. सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 9:33pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, बहुत गहरे तक प्रभाव छोडती बेहतरीन कविता... बहुत बहुत बधाई सर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 8:27pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद। गणतंत्र दिवस की आपको भी शुभकामनाएं। सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 6:37pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, सुन्दर रचना ......बत्तीस रूपये प्रतिदिन में जिंदगी गुजारने वाले.......बहुत खूब ... हार्दिक बधाई ! सादर

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 6:12pm

अनवरत सात दशकों से मात्र  कल्पना सा प्रतीत होता.. न जाने कब पूर्ण होगा...? प्रभावशील रचना आदरणीय डा. विजय जी. बधाई व् गणतंत्र दिवस की ह्रदय से शुभकामनाये

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