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क्षणिकायें - 4 -डॉo विजय शंकर

प्यार का
अर्थ खोजोगे
प्यार खो दोगे

दोस्ती की
वजह खोजोगे
दोस्ती खो दोगे

रिश्तों का अर्थशास्त्र
न काम करे अर्थ ,
न करे शास्त्र

राजनीति
बिना दूध दही
ढेरों नवनीत

शाश्त्रों का अर्थ
अपना अपना
अर्थशास्त्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 7:21pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपको त्रिपदियाँ अच्छी लगी , आपने उनका मान बढ़ाया , आभार। बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद। सादर।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:16am

लगता है कि आदरणीय दया राम मेठानी जी वार्णिक और मात्रिक छंद की गणना में कुछ उलझ गए हैं डॉ विजय शंकर जी।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:14am

सुन्दर त्रिपदियाँ रची है आ० डॉ विजय शंकर जी। हार्दिक बधाई  प्रेषित है।  मेरे विचार में जब इन क्षणिकाओं में भाव-सम्प्रेषण उत्तम ढंग से हो रहा हो तो अकारण ही इन्हें हाइकु में परिवर्तित कर देने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 5, 2014 at 4:12am
रचना को स्वीकार करने के लिए आभार आदरणीय अजय शर्मा जी।
Comment by ajay sharma on December 4, 2014 at 10:40pm

kya khoob kaha hai ....dekhan me chhote lage ghav kare ganbhir

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 4, 2014 at 10:12pm
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय विजय निकोर जी , भाव सार्थक हुए , धन्यवाद।
Comment by vijay nikore on December 4, 2014 at 4:37pm

सुन्दर भाव। हार्दिक बधाई।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 4, 2014 at 4:20am
क्षणिकाएँ आपको पसंद आई , मैं आपका बहुत बहुत अनुग्रहीत हुआ आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी ,
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 7:17pm

बहुत सुन्दर क्षणिकाएं आदरणीय डॉ.विजय शंकर साहब!

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 3, 2014 at 7:01pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , सादर।

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