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हाइकु...
१..
बचपन में
सहारा लगता है
पचपन में
. ----
२.
अदालत है
देखो फंस ना जाना
पुलिस-थाना..
 -----
३.
साँझ ने घेरा
गहरा है अँधेरा
कहाँ सबेरा...
४.
अदावत में
बच नहीं पावोगे
अदालत में .
५.
यह तस्वीर
हैं रंग कैसे- कैसे
ये तकदीर ..
६..
धर्म अपना
ईमान भी अपना
कर्म अपना.
७..
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.
८.
देश हमारा.
कराहता हुआ ये
दंश का मारा.
९ .प्यास अधूरी
जल बिन मछली
 है मजबूरी.
१०.
सरकार है
कैसे ये चल सके
सर! कार है.
.
 ------------ अविनाश बागडे...

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Comment

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Comment by Sarita Sinha on May 19, 2012 at 3:21pm

अविनाश जी, नमस्कार, 

हाइकू विधा में आप लोग कैसे लिख लेते हैं ....मैं तो सोच भी नहीं सकती...कमाल का फन है..बधाई......
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 18, 2012 at 10:45pm

अविनाश जी बहुत सुंदर हाइकु लिखे हैं आपने....सम्पूर्ण, साहित्यिक दिल कू छू जाने वाली रचनाये ! बधाई स्वीकार करें !!

Comment by AVINASH S BAGDE on May 12, 2012 at 4:02pm

 rajesh kumari ..आप सभी 

MAHIMA SHREE ...सुधि-जनों 

 AjAy Kumar Bohat .. का 

SANDEEP KUMAR PATEL ...ह्रदय से 

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR ..आभार......

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 11, 2012 at 10:00pm

धर्म अपना 
ईमान भी अपना 
कर्म अपना. 
७..
कर्ज में डूबे 
बढ़े बचाने हाँथ 
फ़र्ज़ में डूबे.
८.
देश हमारा. 
कराहता हुआ ये 
दंश का मारा.

अविनाश जी ..सुन्दर हाइकु  ..गहन भाव लिए हुए  --भ्रमर ५ 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 11, 2012 at 8:00pm

कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे. waah kya baat hai sir ji

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 7:22pm

Sabhi ek se badh kar ek hain, kya hi gazab likhte hai aap...

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 5:31pm
यह तस्वीर
हैं रंग कैसे- कैसे
ये तकदीर ..

देश हमारा.
कराहता हुआ ये
दंश का मारा.

कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.

आदरणीय अविनाश सर ..
जिंदगी के अलग -२ रंगो को बयाँ करते हायकू ..
उपरोक्त मुझे अच्छे लगे .. बधाई स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 11, 2012 at 5:21pm

कर्ज में डूबे 
बढ़े बचाने हाँथ 
फ़र्ज़ में डूबे.....वाह अविनाश जी सभी हाइकु तंदरुस्त हैं डाईट अच्छी मिली है इस हाइकु के तो क्या कहने 

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