For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत - मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।

तुम मुझको चाहे जो भी समझो लेकिन सुनो प्रिय।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।

तुम अमृत जैसी दुर्लभ हो, तुम गंगाजल सी पावन हो।
तुम खुशबू से लबरेज पवन, तुम बहका-बहका सावन हो।
तुम कलियों में कचनार प्रिय, तुम नील गगन में चंदा हो।
उर्वशी-मेनका से सुंदर, जो जग पूजे वो वृंदा हो।

उस जीवन दाता रब का मुझ पर फजल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।१।।

सांसो की मधुमय हाला से मदहोश सदा हो जाता हूं।
इन नैनो की मधुशाला में परिचय अपना खो आता हूं।
योवन के इस रूप महल में पल में सदिया जी लेता हूं।
जब अधरों के दो प्यालो से मधुरस सारा पी लेता हूं।।

तब खुद को इन कोमल बाहों में कतल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।२।।

तुम्ही बंदना तुम्ही साधना तुम्ही इबादत हो मेरी।
तुम्ही कर्म हो तुम्ही धर्म हो तुम्ही मोहब्बत हो मेरी।।
छलके सदा सादगी जिससे ऐसी भोली सूरत हो।
सजदा सभी करें जिसको वो पावनता की मूरत हो।।

उस परम ब्रह्म के शक्ति रूप की नकल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।३।।

तुम तितली सी इतराती हो तुम कलियों सी इठलाती हो।
मैं भंवरा बन कर आता हूं तुम फूलों से खिल जाती हो।।
तुम मन के सूने आंगन में खुशियों के दीप जलाती हो।
जब बाहों में भर लेता हूं तुम शर्मा कर अलसाती हो।।

तब पुष्पों से खेलते होठों को कमल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।४।।

कोयल से मीठा गाती हो दिल में सरगम ले आती हो।
गुल गुलशन में खिल जाते हैं जब घूंघट कभी उठाती हो।
स्वप्न लोक की परी मेरे ख्वाबों में आती-जाती हो।
तुम अजब नशीली खुशबू से तन मन में आग लगाती हो।।

मनमीत अगर हो संग गीत को सफल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।५।।

तुम चंदन वन की रानी हो निर्धन की प्रेम कहानी हो।
तुम यादों में बस जाती हो भावों की जीवन साथी हो।।
तुम दीपशिखा सी जलती हो क्यों आंखों से यूं बहती हो।
'अमित' दुखों को हंसकर तुम सुंदर लफ्जो में कहती हो।

बस गम को ही झूठी दुनिया में असल समझता हूं।
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।६।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 25, 2019 at 2:34pm

जी,इन दिनों बीमार हूँ, इसी कारण से देर हुई ।

Comment by Amit Kumar "Amit" on July 24, 2019 at 4:07pm

आदरणीय समर कबीर सर जी गीत पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। काफी समय से आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा था। आभार

Comment by Samar kabeer on July 24, 2019 at 12:07pm

जनाब अमित जी आदाब,अच्छा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
15 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service