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सजती चुनाव में यहाँ जब तस्तरी बहुत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२


सजती चुनाव  में  यहाँ  जब  तस्तरी बहुत
फिर भी बढ़े है रोज क्यों ये भुखमरी बहुत।१।


उतरा न मन का मैल जो सियासत ने भर दिया
दे कर  भी  हमने  देख  ली  है  फ़िटकरी बहुत।२।


अब खेल वो दिखाएगी उसको चुनाव में
जनता से जिसने है करी बाज़ीगरी बहुत।३। 


नेता न आया  एक  भी  सेवा  की राह पर
लोगों ने कह के देख ली खोटी खरी बहुत।४।


क्या होगा उनके राज का जनता बतायेगी
करते सदन में जो रहे गत मशखरी बहुत।५।


आता नहीं है दुख नजर निर्धन का क्यों हमें
जब  से   हुई   है   जिन्दगी   लग्जरी  बहुत।६।


होता नहीं है कम यहाँ थोड़ा भी मनमुटाव
वैसे  सुलह  के  लिए  बिछती  दरी  बहुत।७। 


मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on April 30, 2019 at 12:44pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।

होता नहीं है कम यहाँ थोड़ा भी मनमुटाव
वैसे  सुलह  के  लिए  बिछती  दरी  बहुत।७। 

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