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ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)

ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)
(मफाई लुन _मफाई लुन _फ ऊलन)

जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा सेl
लगा बैठा हूँ दिल उस दिलरुबा से l

वो बिन मांगे ही मुझको मिल गए हैं
करूँ कोई दुआ अब क्या ख़ुदा से l

झुका मुंसिफ़ भी ज़र के आगे वर्ना
बरी होता नहीं क़ातिल सज़ा से l

परायों का करूँ मैं कैसे शिकवा
मुझे लूटा है अपनों ने दगा से l

ये है फिरक़ा परस्तों की ही साज़िश
बुझा कब दीप उलफत का हवा से l

वफ़ा की कर न तू उम्मीद कोई
मुहब्बत तू ने की इक बे वफ़ा से l

दूआयें ही हैं वो तस्दीक माँ की
बचाती हैं मुझे जो हर बला से l

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2019 at 6:28pm

मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Samar kabeer on March 7, 2019 at 2:20pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

'मुहब्बत तू ने की इक बे वफ़ा से'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 5, 2019 at 2:01pm

जनाब भाई लक्ष्मण धा मी साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2019 at 10:58am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 5, 2019 at 9:53am

जनाब आसिफ साहिब आ दाब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 5, 2019 at 9:53am

जनाब हरि ओम साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Asif zaidi on March 4, 2019 at 11:34pm

 जनाब टी ए ख़ान साहब उम्दा ग़ज़ल मुबारकबाद मोहतरम

Comment by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 10:56pm

वाह,वाहह,बहुत सुंदर ग़ज़ल

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