For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निस्शब्द स्वरों के कानफोड़ू शोर

चिलचिलाते मौन की बेधती टीस

लगातार भींचती जाती दंत-पंक्तियों में घिर्री कसावट

माज़ी का गाहेबगाहे हल्लाबोल करते रहना..... ....

जब एकदम से सामान्य हो कर रह जाय.. 

तो फिर...

कागज़ के कँवारेपन को दाग़ न लगे भी तो कैसे?

आखिर जरिया भर है न बेचारा ..

/एक माध्यम भर../

कुछ अव्यक्त के निसार हो जाने भर का

महज़ एक जरिया ... ...और....

किसी जरिये की औकात आखिर होती ही क्या है ?

उसके हिस्से

उसे इस्तमाल कर आगे निकलजानेवालों के नक्शेकदम हुआ करते हैं... बस.

कागज़ का कोरापन

उसके बोसीदे वज़ूद के आगे हार ही जाये तो क्या.. ...

बेचारे का शफ्फ़ाक वज़ूद चुड़मुड़ा-चुड़मुड़ा जाये भी तो क्य़ा.. ...

सिलवटें कहीं हों ...

काग़ज़ पर..

या फिर... .. ओह.!..कहीं भी ..

निस्शब्द रातों की मौन चीख का विस्तार भर हुआ करती हैं..

 

--सौरभ

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2011 at 8:32pm

आपकी स्वीकृति ने उत्साहित किया है.

हार्दिक धन्यवाद.

Comment by sangeeta swarup on June 26, 2011 at 4:01pm

चिलचिलाते मौन की बेधती टीस

लगातार भींचती जाती दंत-पंक्तियों में घिर्री कसावट

मौन की चीख है जो झकझोर देती है ..सुन्दर अभिव्यक्ति 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2011 at 1:50pm

वन्दनाजी, रचना की भावना को मान देने के लिये. बहुत-बहुत आभार..

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2011 at 9:34pm

आपने रचना की अंतर्धारा के बहाव को महसूस किया... गोते लगाये... मेरा मान बढ़ा है.

सहयोग बना रहे. इस अपेक्षा के साथ.... गणेशभाई, आपका हार्दिक धन्यवाद. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 25, 2011 at 9:19pm

//कागज़ के कँवारेपन को दाग़ न लगे भी तो कैसे?//

 

आहा, बहुत सुंदर , भाव को बहुत ही करीने से तराशा गया है | साहित्यकारों के हाथ में कागज़ आ जाये तो फिर उसका बच पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है :-)

 

/

किसी जरिये की औकात आखिर होती ही क्या है ?

उसके हिस्से

उसे इस्तमाल कर आगे निकलजानेवालों के नक्शेकदम हुआ करते हैं... बस./

 

बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति | बहुत बहुत आभार सौरभ भईया |

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2011 at 1:59pm

वीरेन्द्रजी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. परस्पर सहयोग बना रहे.

.

Comment by Veerendra Jain on June 25, 2011 at 12:54pm
ek ek lafz ssedhe dil men utarta hai..bahut hi umda kavita....badhai sir...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2011 at 12:51am

बहुत-बहुत धन्यवाद विवेकभाई.

रचना की अंतर्निहित धारा को महसूसने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद. 

रचनाओं के कई कोण और आयाम तो स्व-प्रकाशित एवं मुखर होते हैं, वहीं कुछ कोणों और आयामों की प्रतिध्वनियाँ सूक्ष्म तरंगों में होती हैं, जिनका होना अवश्य ही अव्यय भर नहीं हुआ करता. वाचन के क्रम में पाठक द्वारा उस अनहद की अनुभूति होना रचना की आत्मा को समझना होता है. जो किसी रचनाकर्मी के लिये पारितोषिक सदृश है.

आपका पुनः धन्यवाद.

Comment by विवेक मिश्र on June 25, 2011 at 12:15am

पढने के बाद यही सोच रहा हूँ कि लिखते वक़्त दिमाग में क्या-क्या आया होगा..

/सिलवटें कहीं हों ...

काग़ज़ पर..

या फिर.../- इस पंक्ति ने तो मानों पूरी कविता ही कह दी.. आप और आपकी गहरी सोच को सलाम.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2011 at 11:04pm

अरुणभाईजी,

आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे बहुत अधिक उत्साहित किया है. हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service