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देर तक ....

तुन्द हवाएँ
करती रही खिलवाड़
हर पात से
हर शाख से
देर तक

रोती रही
बेबस चिड़िया
टूटे अण्डों के पास
देर तक

हो गई शान्त
हवाएँ
प्रकृति से
अपना खिलवाड़ करके
हो गया शान्त
रुदन
चिड़िया का
कुछ न समझ सकी
खेल विधाता का
सृजन से पूर्व संहार
क्या यही है
संसार
बस देखती रही
बिखरे तिनके
टूटे अंडे
स्वप्न के अवशेष
देर तक

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 17, 2018 at 6:05pm

आदरणीय narendrasinh chauhanजी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2018 at 6:04pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2018 at 6:04pm

आदरणीय फूल सिंह जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on December 14, 2018 at 2:55pm

खूब सुन्दर भावपूर्ण रचना सर 

Comment by Samar kabeer on December 13, 2018 at 11:06pm

जनबसुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by PHOOL SINGH on December 13, 2018 at 2:48pm

अच्छी कविता बन पड़ी है बधाई स्वीकारें

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