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ताक रही गौरैया प्यासी - गीत

गौरैया है कितनी प्यासी

 

झुलस रहा तन, व्याकुल है मन,  

छायी है चहुँ ओर उदासी.

रख दो एक सकोरा पानी,

ताक रही गौरैया प्यासी.

 

एक घौंसला था छोटा सा,

उड़ गया प्रगति की आँधी में.  

नहीं भरोसा रहा किसी को,

उस गाँवों वाले गाँधी में.

 

तपते पत्थर नन्दन वन में,

झुलस रहे हैं वन के वासी.

 

नदियों का पानी खतरे में,

सिकुड़ रहे हैं रोज किनारे.

पुरातत्व की हुए धरोहर,

पोखर कूप-बावड़ी सारे.

 

लगे नलों पर लम्बी लाइन,

गली-गली में बारहमासी.

 

मिट्टी का घट चौराहे पर,

तपन सूर्य की झेल रहा है.

प्लास्टिक का कंटेनर घर में,

बोटल के सँग खेल रहा है.

 

महल बनाकर भी बुधिया को,

मिल पाती है रोटी बासी.

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 18, 2018 at 10:26am

 आदरणीया Neelam Upadhyaya जी शुभ प्रभात, बहुत बहुत धन्यवाद आपका 

Comment by Neelam Upadhyaya on September 17, 2018 at 2:58pm

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी, नमस्कार।  बहुत ही बढ़िया रचना हुई है।  हार्दिक बधाई। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2018 at 9:27am

आदरणीय समर कबीर जी शुभ प्रभात, आपके आशीष को सादर नमन 

Comment by Samar kabeer on September 16, 2018 at 7:29pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा गीत रचा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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