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"हिन्दी दिवस पर विशेष" हिन्दी ग़ज़ल

कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है

जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है

रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है

भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है

पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है

मुझको तो लगती है ये भाषा अपनी
लेकिन कुछ लोगों की उलझन हिन्दी है

गर्व करे हर भारतवासी ये बोले
मेरे देश की भाषा पावन हिन्दी है

औरों की तो बात "समर" मैं क्या बोलूँ
मेरे माथे का तो चंदन हिन्दी है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 15, 2018 at 8:57pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on September 15, 2018 at 8:56pm

आद0 समर साहब सादर प्रणाम। हिंदी दिवस पर ओ बी ओ के पाठकों के लिए उपहार स्वरूप यह ग़ज़ल बेहतरीन।

जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है

क्या बात, बहुत खूबसूरत....

भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है।।

कमाल की बात कही आपने।

हिंदी ग़ज़ल बहुत पसंद आई हमको। बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल पर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 11:10am

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब। हिंदी दिवस के पावन अवसर पर मातृ भाषा हिंदी को प्रोत्साहन देती सुंदर रचना।भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है

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