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पतझड़ों के बीच भी यदि ऋतु सुहानी है तो है

घर हमारे महमहाती रात रानी है तो है

 

हो रहीं मशहूर परियों की कथाएँ आजकल

और उनमें एक अपनी भी कहानी है तो है  

 

बेवफा वो हो गया पर हम न भूले हैं उसे

यदि हमारे पास उसकी कुछ निशानी है तो है

 

रैलियाँ हैं, थैलियाँ हैं, आदमी बेवश यहाँ   

दर्द की यमुना किनारे राजधानी है तो है

 

मुश्किलें जो थीं हमारीं दूर सारी हो गईं

आँख में यदि आपके थोड़ा सा पानी है तो है

 "मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2018 at 10:02am

आदरणीय लक्ष्म धामी जी दिल से शुक्रिया आपका, सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2018 at 10:02am

आदरणीय समर कबीर जी शुभ प्रभात, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, आपकी इस्लाह का हमेशा इंतजार रहता है मुझे, सादर नमन आपको 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2018 at 9:54pm

आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Samar kabeer on September 10, 2018 at 11:31am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

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