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''फिर क्या होगा ?''

गर कोई पाठशाला न हो फिर क्या होगा
हम जैसों का इस जहाँ में फिर क्या होगा ?

मेरा गजलें लिखना तो है कोई जुर्म नहीं
मगर बिन इल्म लिखीं तो फिर क्या होगा ?

किस्मत ले आई है हमें भी इक कक्षा में  
पाठ समझ ना आये तो फिर क्या होगा ?

हुस्ने मतला का हुस्न हमसे बर्बाद हुआ
अगला मतला पतला हुआ फिर क्या होगा ?

रुक्न को समझने में रुकी हुई है अकल
फायलातुन, मुफाइलुन का फिर क्या होगा ?

रदीफ, काफिया की है हालत बड़ी नाजुक
मत्ला औ मकता का हाल फिर क्या होगा ?

कोशिश फिर भी जारी है ग़ज़ल लिखने की
तक्तीअ में कसर निकली तो फिर क्या होगा ?

शमा जली रखने के जुनूं में महफिल की 
हम ग़ज़ल की टांग तोड़ बैठे फिर क्या होगा ?

सर ओखली में डाला है तो अब डरना क्या
फिर भी सीख ना पाये तो फिर क्या होगा ?

हर शेर की अपनी शानो-शौकत भी होती है
वरना ग़ज़ल के रुतबे का फिर क्या होगा ?

बड़े नामी साहिर हैं ''शन्नो'' इस महफिल में
तू धीरे से खिसक ले वरना हाल क्या होगा ?

-शन्नो अग्रवाल

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Comment

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Comment by Shanno Aggarwal on June 23, 2011 at 10:00pm
तुम्हारे दर्शन का और रचना को सराहने का बहुत शुक्रिया, प्रभा. :)
Comment by Prabha Khanna on June 23, 2011 at 10:16am
क्या ग़ज़ब कर दिया शन्नो दी... वेरी नाइस ...
Comment by Shanno Aggarwal on June 22, 2011 at 4:38pm
बहुत-बहुत शुक्रिया...गणेश.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 22, 2011 at 10:50am

बड़े नामी साहिर हैं ‘’शन्नो’’ इस महफिल में
तू धीरे से खिसक ले वरना हाल क्या होगा ?

 

हा हा हा हा बहुत खूब शन्नो दीदी, आपके ख्याल बड़े दुरुस्त है , होना क्या है ? कुछ न होगा , यह ओ बी ओ है सिखने सिखाने का मंच , हम सभी एक दुसरे से सीखते और सिखाते है , आप का प्रयास सराहनीय है , इस रचना से यह तो लगता ही है की आप ग़ज़ल से सम्बंधित टर्मीनोलाजी समझ रही है |

 

रदीफ़ और काफिया पहले शेर (मतला) से तय होता है उस हिसाब से फिर क्या होगा रदीफ़ है, किन्तु काफिया कुछ भी नहीं है |

 

आपके प्रयास की सराहना करता हूँ | कक्षा को फिर से पढने की जरूरत है दीदी |

 

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