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कैसे करता है ये निर्धन भी गुजारा देखो - तरही गजल ( लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।


दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।


कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।


आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।


सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये निर्धन भी गुजारा देखो।५।


बनके नेता न सियासत को समझलो सबकुछ
देश  जलने  का  तो  अब न  तमाशा देखो।६।

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2018 at 4:34pm

आ. भाई विजय जी, स्नेहिल प्रशंसा के लिए धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on June 12, 2018 at 10:07am

आप गज़ल बहुत अच्छी लिख रहे हैं। बधाई लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2018 at 5:30am

आ. भाई बसंत जी, स्नेह के लिए आभार ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:29pm

बहुत सुंदर गजल 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2018 at 10:37pm

आ. भाई सत्यनारायन जी, उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Satyanarayan Singh on June 9, 2018 at 9:06pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय सादर बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2018 at 8:25pm

आ. भाई बृजेश जी, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2018 at 4:17pm

आ. भाई गुमनाम जी, गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 3:03pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आदरणीय सादर

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 9, 2018 at 2:43pm

वाह बहुत खूब भाई जी वाह ......बधाई

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