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ग़ज़ल(हुस्न और इश्क़ की कहानी है)

(फ़ा इलातुन--मफाइलुन--फ़ेलुन)

हुस्न और इश्क़ की कहानी है।
एक है आग एक पानी है।

कह रही है वफ़ा जिसे दुनिया
उसको पाने की मैं ने ठानी है।

बन के आए हैं वो तमाशाई
आग घर की किसे बुझानी है।

सोच कर कीजियेगा तर्के वफ़ा
अपनी यारी बहुत पुरानी है।

घिर गए मुश्किलों में और भी हम
आप की बात जब से मानी है।

वो अदावत से काम लेते हैं
हम को जिन से वफ़ा निभानी है।

प्यार को क्या मिटाएगी दुनिया
ख़ुद ही तस्दीक़ ये तो फ़ानी है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:24pm

मुहतरम जनाब समर साहिब आदाब ,आपकी सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

वफ़ा का मतलब यहाँ मिसरे में दोस्ती, मुहब्बत लिया गया है । शेर3 में मफ़हूम यह है कि वो सिर्फ तमाशाई बन कर आये है ,घरमें  आग जो लगी है उसे बुझाने नहीं । सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 7:15pm

आ. तस्दीक़ अहमद साहब,
अच्छी   ग़ज़ल हुई है ..
बधाई 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:11pm

जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब ,आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:10pm

जनाब राम शिरोमणि साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 6:40pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

"कह रही है वफ़ा जिसे दुनिया

उसको पाने की मैंने ठानी है'

'वफ़ा' की जाती है, निबाही जाती है,इसे पाने की बात अजीब लग रही है ।

'बन के आए हैं वो तमाशाई

आग घर की किसे बुझानी है'

इस शैर का मफ़हूम साफ़ नहीं है,दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ,देखियेगा ।

Comment by Shyam Narain Verma on May 9, 2018 at 6:06pm
इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाईयाँ 
Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 4:26pm

अच्छा कहा है जनाब।।बधाई

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