For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं ) -

(फ ऊलन -फ ऊलन-फ ऊलन-फ ऊलन )


मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं।
हसीनों से वह दिल लगाने चले हैं।

सज़ा जुर्म की वह न दे पाए लेकिन
मेरा नाम लिख कर मिटाने चले हैं।

लगा कर त अस्सुब का आंखों पे चश्मा
वो दरसे मुहब्बत सिखाने चले हैं ।

अदावत भी जिनको निभाना न आया
वो हैरत है उल्फ़त निभाने चले हैं ।

बहुत नाम है ऐबगीरों में जिनका
हमें आइना वो दिखाने चले हैं ।

अचानक इनायत न उनकी हुई है
वो कोई नया गुल खिलाने चले हैं ।

वो फ़िर उनके वादों पे कर के भरोसा
नई चोट तस्दीक़ खाने चले हैं ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 3, 2018 at 12:44pm

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 8:43am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2018 at 7:58am

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब , गज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2018 at 7:51am

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,

                                 लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 30, 2018 at 1:35pm

आ.जनाब नीलेश नूर साहिब ,ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

  • आपका कहना सही है लेकिन ग़ज़ल लिखते वक्त यह बात मेरे खयाल में नहीं रहती क्योंकि मैं ने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया। मैं ने पहले क़ाफ़िया "खाने"ही बांधा था ।ऊपर वाले से दुआ है कि हम जल्द से जल्द मिलें ,तबाद लए ख़यालात हों और एक दूसरे को सुनें और सुनाएं। ।--सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 30, 2018 at 1:26pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,ग़ज़लमें आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 8:20am

आ. तस्दीक़  अहमद साहब,
अच्छी  ग़ज़ल हुई है ..
मतले  में फिर इता दोष की सूरत बन रही है ..यदि ऊला में काफिया "खाने" लिया जाय तो दोष भी छूटेगा और प्रभाव भी बढेगा, ऐसा मुझे लगता है ..
मक्ते  के ऊला में वो की   जगह लो से शुरूअ करने से ... ख़ुमार अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं..जैसा विस्मयकारी प्रभाव उत्पन्न होगा.
यह शानदार ग़ज़ल आप से तरन्नुम में सुनने की इच्छा है ..उम्मीद है जल्दी ही कहीं मुलाक़ात होगी 
सादर  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 29, 2018 at 7:56pm

वाह आदरणीय खूबसूरत ग़ज़ल कही है सादर..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service