For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की-जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ

२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२

.
जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ
कागज़ी कश्ती से दरिया पार कैसे मैं करूँ.
.
ऐ अदू तेरी तरह गुफ़्तार कैसे मैं करूँ,
फूल बरसाती ज़बां को ख़ार कैसे मैं करूँ.

चाबियाँ मैंने ही दिल की सौंप दी थीं यादों को
आ धमकती हैं जो अब, इन्कार कैसे मैं करूँ.
.
रेत का घर है ये दुनिया तिफ़्ल सी उलझन मेरी  
ख़ुद बना कर ख़ुद इसे मिस्मार कैसे मैं करूँ.
.
रूह बुलबुल है जिसे ये क़ैद रास आती नहीं  
है क़फ़स सोने का पर सिंगार कैसे मैं करूँ.
.
हिज्र के असरात से पथरा गया है दिल मेरा
इस अहिल्या का मगर उद्धार कैसे मैं करूँ.
.   
एक दिन उस “नूर” से जो सामना होगा मेरा  
फ़िक्र ये है रूह को तैयार कैसे मैं करूँ.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2018 at 11:11am

धन्यवाद आ समर सर,

दो बार ख़ुद पर आपका संशय उचित है किंतु मैं इस शेर में ख़ुद से मुख़ातिब हूँ इसलिए दोस्तो नहीं लूँगा। कुछ और सोचता हूँ।

सादर

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 10:47am

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ  मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'ख़ुद बनाकर ख़ुद इसे मिस्मार कैसे मैं करूँ'

इस मिसरे में 'ख़ुद' शब्द दो बार खटक रहा है,इसे यूँ करलें तो कैसा रहे:-

'ख़ुद बनाकर दोस्तो मिस्मार कैसे मैं करूँ'

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2018 at 6:54am

धन्यवाद आ हर्ष महाजन साहब

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2018 at 6:54am

धन्यवाद आ सुशील सरना साहेब

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2018 at 6:54am

धन्यवाद आ दिनेश भाई जी

Comment by Harash Mahajan on April 17, 2018 at 6:17am

"चाबियाँ मैंने ही दिल की सौंप दी थीं यादों को 
आ धमकती हैं जो अब, इन्कार कैसे मैं करूँ"....वाह बहुत ही खूब ।

दिली दाद आदरणीय नीलेश जी ।

सादर

Comment by Sushil Sarna on April 16, 2018 at 8:30pm

रूह बुलबुल है जिसे ये क़ैद रास आती नहीं
है क़फ़स सोने का पर सिंगार कैसे मैं करूँ.

वाह आदरणीय नीलेश जी बड़े ही खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस बेहतरीन ग़ज़ल में। दिल बधाई स्वीकार करें।

Comment by दिनेश कुमार on April 16, 2018 at 7:43pm

मतला और मक़्ते पर विशेष दिली दाद आदरणीय निलेश सर। उम्दा ग़ज़ल हुई है। वाह वाह वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service