For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रातरानी और भौरा(कहानी )

 “ रात महके तेरे तस्सवुर में

 दीद हो जाए तो फिर सहर महके “

“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा

प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |

कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |

“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया रहा |प्ले लिस्ट अपने आप रिस्फ्ल हुई तो –

“आओगे जब तुम ओ साजना

अँगना फूल खिलेंगे ----“

सुनिधि ने कुछ देर बाद फिर एक ईयरफोन अपने कान में लगाया और झुंझला के लीड खींची और उसे नाराजगी  से देखने लगी |

“तुम्हारी प्रोब्लम क्या है ?” अमित ने गुस्से से कहा

“वही तो मैं जानना चाहती हूँ कि तुम्हारी प्रोब्लम क्या है |”सुनिधि ने भी उसी टोन में जवाब दिया

“क्या अपनी पसंद के गाने सुनना गुनाह है ?”

“नहीं !बिलकुल नहीं ! पर अपना बाग होते हुए दूसरे बगीचे की खुशबू पाने की कोशिश गुनाह है |”

“मैंने ऐसा क्या कर दिया ?”

“अपनी बीबी के रहते दूसरी औरतों को ताड़ना और उनके बारे में सोचना -----उनके परफ्यूम की शिनाख्त करना ---मुझें लगता है की तुम बीमार हो |किसी डाक्टर से क्यों नहीं मिलते  ----“

“तुम सारी की सारी औरतें बस -----अनपढ़ हो या पढ़ी लिखी -----शहरी हो या देहाती----आदमी किसी दूसरी औरत को देख ले या थोड़ी बात कर ले तो बस तुम्हें एक ही मतलब नजर आता है |बीमार मैं नहीं बल्कि तुम और वे सारी औरते हैं जो तुम्हारी तरह सोचती हैं |वस्तुतः तुम सब एक ही बीमारी से पीड़ित हो |”

“कौन सी बीमारी ?”

“शक !”

“सही कह रहे हो और इसका भी रिजन है |”

“क्या रीजन है ?”

“तुम लोग औरत देखते नहीं हो कि पूंछ हिलाना,लार टपकाना शुरू ---“

“बिहैव योर सेल्फ |”

“यू बिहैव योर सेल्फ |”

झुंझला कर अमित फोन बिस्तर पर पटकता है और बालकनी में आकर सिगरेट पीने लगता है |एक सिगरेट—दो सिगरेट—तीन सिगरेट |तंबाकू की गंध उसके फेफड़ों में समा जाती है और सुगंध ग्रन्थियों में चिपकी परफ्यूम की  खुशबू कुछ फींकी हो जाती है |वो वापस कमरे में लौटता है |सुनिधि आँख लाल और गाल गीले किए हुए लेटी थी |

“ओ माई फ्लावर !” अमित पीछे से जाकर उसे दबोच लेता है पर निधि पूरी ताकत से उसे दूसरी तरफ धकेल देती है |

“यह तो भँवरे की इन्सल्ट है |”अमित ने फिर उसकी छाती पर हाथ रखते हुए कहा

“तो चले जाओ उस फूल के पास जो तुम्हारी कद्र करे |”सुनिधि ने इस बार फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर प्रतिरोध हल्का था

“जानेमन ! मेरा तो फूल भी तुम,गुलदस्ता भी तुम और बगीचा भी तुम |” इस बार अमित ने उसे जोर से खींचते हुए अपनी करवट कर लिया

“छि ! तुम्हारे मुँह से बदबू आ रही है |क्यों पीते हो सिगरेट |” सुनिधि ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा |

“ताकि तुम्हारी खुशबू का शुरुर कम हो जाए |क्यों लगती हो ये परफ्यूम !” अमित ने अपने होंट सुनिधि के होंठ पर रखते हुए कहा

“ताकि तुम मेरी खुशबू में खो जाओ और मैं तुम्हारी----“

“और कुछ |”

“ और हमारे आँगन में एक फूल खिल सके |”

“अच्छा तो ये बात है |”कहते हुए अमित उसे अपने और करीब खींच लेता है |जो बाग कुछ समय पहले तूफानी हवाओं से अस्त-व्यस्त होने को था |बसंत की मद्धम हवाओं के स्पर्श से तरंगित हो उठा था |

थोड़ी देर बाद सुनिधि सो जाती है पर अमित एक बार फिर उस गंध की और बरबस आकर्षित होता है |वि|चारों का गुलदस्ता फिर महकने लगता है |

क्या आज वो पार्टी में आई थी ?पर इस तथ्य की पुष्टि भी तो नहीं की जा सकती ---वो न तो उसका नाम जानता है और ना उसके रूप-रंग से परिचित है ---उसकी पहचान का तो एकमात्र सुराग है वो सुगंध |पर बहुत से लोग एक ही तरह की सुगंध या परफ्यूम का  इस्तेमाल करते हैं और रोज़ आफ़िस,सफ़र और पार्टियों में उसे उस प्रफुयम की गंध चाहे-अनचाहे मिल जाती है |पर वह फूल जिसकी खुशबू वह तीन सालों से साँसों में सहेजे है वह कौन सा है |

कभी-कभी उसे लगता की वह किसी मानसिक रोग का शिकार हो रहा है और उसे अपनी इस समस्या का हल निकालना चाहिए |उसकी यह समस्या उसके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करने लगी है और सुनिधि उसे आवारा और गैर-जिम्मेवार पति के तौर पर देखने लगी है |कई बार वह  सोचता है की सुनिधि को सारी बात बता दे
पर फिर उसे याद आता है अपना वादा जो उसने उस अंजान खुश्बू को कर दिया था |दूसरा डर यह था की उसने सुहागरात को सुनिधि को कह दिया था कि उसका कोई पास्ट नहीं है |

ममेरे भाई महेश की शादी से लौटने के एक माह बाद उसके पास एक बेनामी बैरन आई थी –

मुझे यकीन है की आप भी मेरी तरह  उस रात के खूबसुरत अहसासों को अपने दिल में सजाएँ हैं |पर आप भी समझते होंगे की उस रात को जो कुछ हुआ वह अप्रत्याशित था |ना तो मेरी कोई ऐसी इच्छा थी ना आपकी कोई मंशा |हम दोनों तो एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे फिर भी जो कुछ हुआ वह बहुत ही खुबसूरत और अनमोल अनुभव है | पर उस रात के बाद से मैं आपको प्यार करने लगी हूँ |और मुझे मह्सूस होता है की शायद कुछ ऐसा ही आप महसूस कर रहे होंगे |यकीन मानिए आपके होठों का स्पर्श और हाथों की छुअन अब तक मेरे जिस्म पर महक रही है |मुझे यकीन है की आप भी शायद कुछ ऐसा ही विचार रखते होंगे |शायद आप भी मुझे प्यार करने लगे होंगे |और प्यार हमें विश्वास और बलिदान करना सिखाता है |बड़ी मुश्किल से आपका पता निकाला है और इस भरोसे के साथ आपकों यह पत्र लिख रही हूँ की आप अहसास की इस खुशबू को खुद तक सीमित रखेंगे और मेरे यकीन की पर्चियां नहीं उड़ायेंगे |एक वादा चाहती हूँ कि आप उस रात की घटना का जिक्र किसी से नहीं करेंगे और पत्र पढ़ते ही इसे नष्ट कर डालेंगे |

आपके स्पर्श से बिखरी आपकी अनजानी महक |

अमित ने वैसा ही किया |अनजाने में उसने वादा तो कर दिया |पर अब वादे का फूल दिमाग के बंद पैक्ट में पड़ा-पड़ा सड़ने लगा था उसमें कीड़े पड़ने लगे थे |रातरानी की जिस खुशबू को वह महसूस कर भूल आया था उस खत के बाद वही खुशबू उसके इर्द-गिर्द घेरा बनाए उसकी साँसों को जकड़े हुए थी |

वो खुद को उस अंजान लड़की से किए वादे के तले घुटता महसूस कर रहा था |उसने भाई की शादी के एल्बम से उस कद-काठी की शिनाख्त करने की कोशिश की ---उसने ममेरी भाभी से मज़ाक-मज़ाक में उसकी सभी बहनों के नाम पूछें

“ब्याहने को तो बहुत सी हैं भैया जी ! आपकों किस से गठबंधन करना है ?” भाभी ने भी चुटकी लेते हुए कहा

अमित उलझन में पड़ गया |उसे तो मालूम भी नहीं था कि वो कौन थी |गोरी थी या सांवली थी |लंबी थी या ठिगनी थी |शादीशुदा थी या कुंआरी थी |उसके पास तो केवल एक ही क्लू था |वो खुशबू |छह महीने तक काफ़ी खोजबीन के बाद निराश होकर उसने कोशिश छोड़ दी |फिर उसका ब्याह सुनिधि से हो गया |पर खुशबू की वह बेड़िया उसके मन को आज़ाद ना कर सकीं |

शादी की दूसरी रात उसने सुनिधि को टोकते हुए कहा-परफ्यूम मत लगाया करो |मुझे पसंद नहीं है परफ्यूम |

“ये वाला या कोई सा नहीं |”

“कोई भी नहीं—मुझे चिढ़ होती है परफ्यूम से –नकली महक से –“

“कोई खास वजह |”

“क्या हर चीज़ की वजह होनी जरूरी है ?”

“नहीं |मेरा वो मतलब नहीं था |अच्छा किसी पार्टी में जाना हो तब तो लगा सकती हूँ |”

“ठीक है |पर जितना कम हो सके उतना ही लगाना ---”

एक बाद अमित के मित्र की पार्टी में जाना था |सूट-बूट टाई पहने अमित जाने को तैयार था कि सुनिधि ने परफ्यूम का एक स्प्रे उसके कपड़ों पर कर दिया |

“व्ह्ट्स दी हैल यू आर डूइंग !” अमित ने कोट फैंकते हुए कहा |

“परफ्यूम ही तो लगाया है |ऐसी कौन सी बड़ी आफत आ गई !”

“मैंने तुम्हें पहले ही समझाया था कि आई हेट परफ्यूम !” अमित ने झल्ला कर जूते भी फैंक दिए |

“वजह भी नहीं बताओगे और नाराज भी हो जाओगे |” सुनिधि ने मायूस होते हुए कहा

कैसे बताए अमित की वो वचनबद्ध है कुछ भी ना बताने के लिए |कैसे बताता की स्वाति-नक्षत्र की चंद बूंदों ने उसे चातक बना छोड़ा है और इस व्रत का पालन वह आजीवन करेगा |

ममेरे भाई मनोज की बरात सहारनपुर के एक गाँव में गई थी |दिल्ली में पढ़ रहा अमित सीधे बारात में शामिल हुआ था |गाड़ी लेट हो जाने के कारण वह द्वारचार में भी शामिल नहीं हो पाया था |खाना खाने के बाद वो विवाह देखने के लिए कुछ देर मंडप में बैठा |अलग-अलग आयु की महिलाएँ मंडप में बैठीं मंगलगीत और गलियाँ गा रहीं थीं |हर स्त्री अपने आप में अनोखी थी |शादी-शुदा औरतें सजी-धजी थीं तो अधेड़ उम्र वाली हल्की साड़ी में बैठीं थीं |बहुत सी अविवाहित लड़कियाँ भीं बैठीं थीं जो गलियों और हँसी-मजाक में गाँव की भाभियों के साथ मोर्चा सम्भालें हुईं थीं और वर दल को पस्त किए थीं |कुछ देर बाद उसे थकावट महसूस हुई तो सोने की गरज से वह इधर-उधर देखने लगा |

कुछ ही दूरी पर उसे बारतियों के लिए रखीं हुई चारपाई दिखाईं दीं |वहाँ आसपास और लोग भी खटिया पर लेटे थें |कुछ सो रहे थे,कुछ बतिया रहे थे |शादी का शोर और मंडप की तेज़ मरकरी की चकाचौंध वहाँ तक पहुँचती थी |अमित की एकांत और अँधेरे में सोने की आदत थी |उसने आसपास नज़र दौड़ाई |उस जगह से बीस मीटर की दूरी पर गली थी |गली में दूसरे घर की साइड की दीवार की तरफ़ खासा अँधेरा था |उसने खटिया वहीं डाल ली |खटिया डालते समय वहीं दीवार के साथ सूख रही साड़ी खटिया में फँस कर साथ में आ गई |कुछ देर तो वह उसका सिराहन बनाए रहा पर जब मच्छरों ने परेशान करना शुरू किया तो उसने साड़ी ओढ़ ली और उंघने लगा |

सहसा उसने देखा की वह किसी बड़े बगीचे में बैठा है जहाँ तरह-तरह के फूल हैं |कुछ बेहद खूबसूरत और खुशबू से लबरेज़ |तो कुछ सादे पर दिलकश |कुछ मुरझाते हुए से |तो कुछ ऐसे भी जो खिलने को आतुर हैं |अचानक से रातरानी की तीव्र गंध उसके नथुनों में समाहित हुई और वह उस खुशबू में सराबोर होने लगा |उसने महसूस किया की कोई होंठ ठीक उसके होंठों से लगा है और उसकी छाती के पास मुलायम सा स्पर्श उसे बार-बार कंपन दे रहा है |उसने देखा की जिस बाग में वह बैठा है वहाँ एक भौरा इधर-उधर मंडरा रहा है और अंत में वह एक खूबसूरत फूल पर बैठ जाता है और फूल अपनी पंखुडियां बंद कर लेता है |

“अमित,चलों बिदाई हो रही है ---और तुम ये साड़ी किसकी उतार लाए |”छोटे ममेरे भाई धनंजय ने मुस्कुराते हुए उसे जगाकर कहा |

उसने झट से साड़ी खटिया पर फैंकी तो उसे खटिया पर रातरानी की एक मसला हुआ फूल दिखा |थोड़ी ही दूरी पर रातरानी की गाछ लगी हुई थी |उसने चुपके से वह फूल उठाकर जेब में रख लिया और बाद में अपनी डायरी में रख लिया |शहर लौटने के बाद वह कई रोज़ तक इस सवाल में उलझा रहा कि उस रात जो कुछ हुआ वह एक स्वप्न था या सच |

जब वह अजनबी खत उसे मिला तो उसे तसल्ली हुई की उस रात किसी रातरानी ने उस भौरें को अपना सर्वस्व सौंप दिया था |पर उस रात से एक जिज्ञासा कौंध उठीं थी की वह रातरानी थी कौन ?वचन देकर वह बंध चुका था |वह न तो खुल के सवाल कर सकता था |ना अपनी उलझन किसी से बाँट सकता था  |तीन साल होने को आए पर आज तक समझ नहीं आया की रातरानी की वह खुशबू कहाँ से आई थी  |

“सुनती हो जया भाभी का फोन आया था ?”

“अच्छा !क्या कह रहीं थीं ?”

|“उनके पीहर में उनके छोटे भाई सुरेन्द्र की शादी है |कह रहीं थीं कि आना है |तुम्हारा फ़ोन नम्बर माँग रहीं थीं |”

“हाँ,मेरे पास भी फोन आया था |”

“फिर क्या करें ?”

“चलना पड़ेगा वैसे भी मेरी छोटी मौसी का ससुराल वहीं हैं |इसी बहाने उनसे भी मुलाकात हो जाएगी ”

“क्या शादी से पहले कभी वहाँ गई थीं ?”

“एक बार गई थी |तीन-चार साल पहले  ?”

“चलों ठीक है ! तैयारी कर लो |मैं दफ्तर में छुट्टी की अर्जी दे देता हूँ |”

वह तिलकोत्सव की शाम को जया के गाँव पहुँचते हैं |सुनिधि जया के साथ स्त्री-दल में शामिल हो जाती है और नाचने गाने में रम जाती है |अमित जयंत और दूसरे पुरुषों के साथ पार्टी में रम जाता है |पूरा वातावरण केवड़े,इत्र और भांति-भांति की गंधों से भर हुआ था |उसे अपना सिर भारी मालूम हुआ |उसने आराम की इजाजत माँगी |

“अभी से थक गए !अभी तो पूरी रात बाकी है |मनोरंजन का पूरा प्रबंध है |कानपुर का सबसे फैमस आर्केस्टरा बुलाए हैं ---“ ज्या के मंझले भाई समीर ने पैग बनाते हुए कहा |

आर्केस्ट्रा का प्रोग्राम शुरू होता है |

“अमित बाबू,जो गाना सुनना है सुनिए,बस नोट उड़ाते रहिए और पूरा आनंद लीजिए –“

“दिल्ली से आए दिलदार अमित बाबू की फरमाईश पर गुलशन बेगम गीत प्रस्तुत कर रहीं हैं ”आर्केस्ट्रा के एंकर ने घोषणा की

और

“1-फूल तुम्हें भेजा है खत में/फूल नहीं मेरा दिल है----“

“2-तू धरती पे चाहे जहाँ भी रहेगी/तुझे तेरी खुश्बू से पहचान लुंगा  “

“3-भँवरे ने खिलाया फूल/फूल को ले गया राजकुंवर ---“

शामियाना उजड़ा तो अमित ने सोने की इजाजत माँगी |वहीं नीम के पेड़ के नीचे उसका बिस्तर लगा दिया गया |पर दरवाजे पर जेनसेट की आवाज़ और बिजली की चौंध नसे  वो सो नहीं पा रहा था |कुछ देर बाद वह अपना बिस्तर खींच कर साथ वाली गली में ले गया |ओढ़ने की चादर कुछ छोटी थी |इसलिए जब उसने मुँह ढका तो पैरों पर मच्छर काटने लगे |उसने आसपास नज़र दौड़ाई |पास ही दीवार पर एक साड़ी सूख रही थी |उसने साड़ी खींच कर ओढ़ ली |उसकी आँख लग गई |

सहसा उसे रातरानी की खुशबू अपने  नथुनों में समाती लगी |उसने महसूस किया किसी का हाथ उसकी छाती पर रखा है |उसे लगा वह सुखद स्वप्न में है इसलिए उसने आँख नहीं खोली |फिर उसे महसूस हुआ की कोई उसे हिला कर जगाने का प्रयास कर रहा है |उसने हड़बड़ा कर आँख खोली |

“आप यहाँ सो रहे हैं --- चलिए भीतर चलिए |” सामने सुनिधि खड़ी थी

“कहाँ ?” उसने आँख मलते हुए सुनिधि को देखा |

“फ़िक्र मत कीजिए |यही मेरी मौसी का घर है |आप तो आते ही भईया लोगों के साथ बैठ गए इसलिए मौसी से मिलवा नहीं पाई |”

वह सुनिधि के साथ उस घर में प्रवेश करता है तो रातरानी के खुशबू और तेज़ हो जाती है |

“आइए दामाद जी---हम आपकी मौसी सास हैं पर देखिए उम्र में सुनिधि से केवल छह  सल बड़ी हैं ---आप चाहें तो हमें बड़ी साली भी मान सकते हैं |”

“जी |” उस समय उसे सोने की हड़बड़ाहट थी |

सुबह मौसी सास ने चाय के साथ उन दोनों को जगाया |

“मौसाजी नहीं दिख रहे |” उसने चाय का घूंट भरते हुए कहा

“फौज में हैं |अभी ड्यूटी पर मिजोरम में हैं |” उन्होंने छोटा सा जवाब दिया

“मैं यहाँ तीन साल पहले जया भाभी के विवाह में भी शरीक हुआ था |”

“अच्छा,पर तब तो तुसमे कोई परिचय नहीं था |तब सुनिधि नहीं मिली थी ना आपको |”

“जी |अगर जानते की आप हमारी फ्यूचर सास हैं तो खूब सेवा करवाते आपसे –--“ उसने दिल्लगी करते हुए कहा

“कोई नहीं—वो कसर आज पूरी कर लें –बताएँ क्या खाएँगे |”

तभी एक दो साल की बच्ची  रोती हुई आई |उसकी शक्ल कुछ-कुछ रातरानी सी और कुछ-कुछ भौरें सी लगती थी |

“चार साल बाद बड़ी मुश्किल से हुई है यह |---मौसी की एकांत की एकमात्र साथी ” सुनिधि ने कहा |

मौसी तब तक बच्ची को लेकर कमरे से बाहर जा चूकीं थीं |

चाय पीकर वह सुनिधि के साथ आँगन में बैठ गया |वहीं आँगन में तुलसी का चौबारा था |चौबारे पर एक दिया जल रहा था और आसपास रातरानी के फूल चढ़े हुए थे |

शहर लौटते समय वह मौसी से मिलने आए |सहसा उसकी नजर मौसी पर पड़ी |मौसी की नजरें उसकी नजरों से टकराई |मौसी नजरें झुका कर रातरानी को देखने लगीं |खुशबू का एक तेज़ झोका उसके नथुनों में समा गया और रातरानी की हरी-भरी गाछ देखकर वह रोमांचित हो उठा |भँवरा फूल की कैद से मुक्त हो चुका था |अब वह उड़ने के लिए आज़ाद था |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )

 

 

 

 

 

 

 

Views: 1573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on April 1, 2018 at 1:08pm
हौसलाहफ्जाई के लिए शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on March 31, 2018 at 6:23pm

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
yesterday
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service