योगिराज देवरहा बाबा :- देवरिया सुप्रसिद्ध संत ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा की कर्मस्थली रह चुकी है । देवरिया क्षेत्र की जनता हार्दिक रूप से शुक्रगुजार है उस परम मनीषी, योगी की जो देवरिया क्षेत्र को अपना निवास बनाया, इस क्षेत्र की मिट्टी को अपने पावन चरणों से पवित्र किया और अपने ज्ञान एवं योग की वर्षा से श्रद्धालु जनमानस को सराबोर किया । इस योगी की कृपा से देवरिया जनपद विश्वपटल पर छा गया । देवरहा बाबा ब्रह्म में विलीन हो गए लेकिन उनके ईश्वरी गुणों की चर्चा करते हुए आज भी श्रद्धालु अघाते नहीं हैं । देवरहा बाबा के भक्तों की सूची में महान राजनीतिज्ञ माननीया स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर माननीय अटल बिहारी बाजपेयी तक हैं । जनता जनार्दन की सुने तो देवरहा बाबा एक परम सिद्ध महापुरुष थे, इसमें कोई दो राय नहीं ।
निवास :- देवरहा बाबा के मूल निवास के बारे में लोगो में भ्रम है पर ऐसा कहा जाता है कि देवरहा बाबा कहीं बाहर से आए । देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे ।
व्यक्तित्व :- बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए । बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा । बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे । बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था । बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे ।
बाबा की लीला :- अब आइए थोड़ा बाबा के ईश्वरी गुणों पर चर्चा की जाए ।
श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे । प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी । श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है ।
लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया । बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे ।
लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई ।
हमारे बाबाजी (दादा) पंडित श्रीरामवचन पाण्डेय बताते हैं कि एक बार वे कुछ लोगों के साथ बहुत सुबह ही देवरहा बाबा के दर्शन के लिए पहुँचे और ज्योहीं मेरे दादाजी और अन्य भक्तों ने देवरहा बाबा को प्रणाम किया त्योंही देवरहा बाबा ने मेरे दादाजी की ओर इशारा करते हुए कहा कि भो पंडित कीर्तन सुनाओ । मेरे दादाजी ने कहा कि बाबा मुझे कीर्तन नहीं आता । इसपर देवरहा बाबा ने कहा कि 'हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे...' यह भी तो कीर्तन ही है फिर सभी श्रद्धालुओं ने मिलकर नामकीर्तन किया ।
काफी दिनों तक देवरिया में रहने के बाद देवरहा बाबा वृंदावन चले गए । कुछ समय तक वहाँ रहने के बाद देवरहा बाबा सदा के लिए समाधिस्त हो गए । बोलिए संत शिरोमणि देवरहा बाबा की जय ।
--प्रभाकर पाण्डेय
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