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अगला वेलेंटाइन (लघुकथा)

"बहुत हो गये फोटो! अब मैं तुम्हें बिकनी में देखना चाहता हूं!" अंततः शरीर की भूख उसके शब्दों से ज़ाहिर हो गई थी। दोस्ती से तन तक के फार्मूले से बचकर अगली बार जब उसने मुहब्बत बरसाने वाले शादीशुदा आदमी के साथ वेलेंटाइन डे मनाया तो दो शरीर एक हो ही गये थे और बरसने वाली मुहब्बत चंद दिनों में ही रफूचक्कर हो गई थी। शादीशुदा मर्द से धोखा खाने के बाद इस बार वेलेंटाइन डे पर वह एक साहित्यकार की आगोश में थी।


"तुमने विवाह क्यों नहीं किया?" अपनी लिखी कुछ काव्य रचनाएं सुनाकर साहित्यकार ने पूछा।


"यही सवाल यदि मैं तुम से करूं, तो?" उसने अपने लम्बे बाल टेबल पर बिछाते हुए कहा।


"मुझे ऐसी लड़की या औरत नहीं मिली, जो मुझे समझ सके, मेरी शारीरिक, मानसिक और रूहानी ज़रूरतों को पूरा कर सके!" साहित्यकार ने बिखरे बालों को अपनी अंगुलियों में फंसाते हुए नैनों में नैन फंसाने की कोशिश करते हुए कहा।


"तुम जैसों को तो ऐसी चाहिए जो ज़रूरत और वक़्त के मुताबिक़ सहेली, मां या बहिन सी भी बन सके या बेड-पार्टनर!" शरीर को आगे थोड़ा झुका कर उसने हाथों की अंगुलियां साहित्यकार की अंगुलियों में फंसा कर कहा- "बीवी की ज़रूरत नहीं! न ही तुम जैसों के साथ बीवी ख़ुश रह सकती है!"


"तुम्हें कैसे मर्द की ज़रूरत थी?" वेलेंटाइन उपहार को टेबल से खिसकाते हुए साहित्यकार ने पूछा और अपनी डायरी को कुछ शब्द पिला दिए।


"चला ली कलम!" उसके हाथ से कलम छीन कर हाथ पकड़ कर वह उसे बाहर ले गई और बोली- "ये मत पूछो कि मुझे कैसा मर्द चाहिए! मर्दों ने ही तो मुझे मर्द सा बना दिया! आज तुम मेरे वेलेंटाइन हो! बोलो किसी पोज़ में फोटो ही उतारोगे या कपड़े!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 9:53am

इस गंभीर पाठन के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on February 14, 2018 at 9:46am

आपकी लघुकथा आज फिर से पढ़ी... और हैरान भी हूँ ... बहुत ही सशक्त लघुकथा है। फिर से बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 9:06am

मेरी इस रचना पर समय देकर भाव और संदेश पर अपने विचार साझा करते हुए अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा साहिब। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2018 at 3:25pm
आदरणीय शेख शहजाद जी कटाक्ष करती हुयी शानदार लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 1:30pm

सुन्दर कटाक्ष, सुन्दर लेखन। आपको दिल से बधाई, इस अच्छी लघुकथा के लिए, आदरणीय भाई शेख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 5:32pm

जनाब शेख शहज़ाद साहिब , वेस्टर्न संस्कृति को आईना दिखती सुंदर
लघुकथा हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ|

Comment by Mohammed Arif on February 11, 2018 at 7:42am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                   बहुत ही सशक्त और कटाक्षपूर्ण लघुकथा । हार्दिक बधाई  स्वीकार करें ।

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