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ग़ज़ल ( दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे )

(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )

दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |
कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |

मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |

थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका
कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |

फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर
जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |

मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना
तेरी दहलीज़ पे सर कौन झुकाना चाहे |

दरमियाँ अपने रहे दोस्ती यूँ ही क़ायम
मेरे महबूब भला कब यह ज़माना चाहे |

हर नज़र मुझ पे ही तस्दीक़ लगी है वरना
उनके चहरे से नज़र कौन हटाना चाहे |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on February 13, 2018 at 2:33pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,

                         ख़ूबसूरत ख़्यातों से भरपूर ग़ज़ल लिए भरपूर दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 13, 2018 at 10:54am

आद0 तस्दीक अहमद खान साहिब सादर अभिवादन।बहुत बेहतरीन अशआर।एक एक शेर में उम्दा ख्यालात। शैर दर शैर मुबारकवाद पेश करता हूँ।

Comment by Neeraj Nishchal on February 13, 2018 at 9:41am

Waahhhhh बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई

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