For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : अब दवाओं का नहीं मुझ पे असर होने को है

अरकान : 2122 2122 2122 212

एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है

कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो
ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है

हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये
और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है

आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर
अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है

करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए
अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को है

डर रहा है लो ख़ुदा भी आदमी को देखकर
जल्द ये अख़बार की पहली ख़बर होने को है

बजबजाती नालियों सी है सियासत हर कहीं
कुछ दिनों में देखना दुनिया गटर होने को है

देश के हालात पर गाँधी के बन्दर कह उठे
क्या मियाँ सोचा था हमने क्या मगर होने को है

रहती दुनिया तक रहेगा यार अपना इश्क़ भी

मत समझ क़िस्सा ये अपना मुख़्तसर होने को है

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on December 28, 2017 at 2:30pm

आ. अजय जी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ. जब मैंने यह ग़ज़ल पोस्ट की थी तो उसमें आख़िरी शेर नहीं था. मैंने उसे संशोधन के वक़्त जोड़ा था. इसके अतिरिक्त भी यदि आपको लगता है कि कोई शेर ठीक नहीं है तो अवश्य सूचित करें. मैं या तो उसे संशोधित करूँगा अथवा हटा दूँगा. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on December 28, 2017 at 2:25pm

सादर आदाब, आ. समर सर. इस ग़ज़ल के सन्दर्भ में आपने जिन कमियों की ओर इशारा किया है मैं अभी उन्हें दुरुस्त करता हूँ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार.

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 1:18pm

आदरणीय महेंद्र जी,

कुछ अशआर बहुत अच्छे है, लेकिन कुछ जल्दी में कहे गए लगते है. अब आप जिस स्तर पर हैं वहां हर काफिया इस्तेमाल करने के मोह से बचना चाहिए. कोशिश ये होनी चाहिये की ग़ज़ल में शेर चाहे कम हो जो हों बेहतरीन हों.

हार्दिक बधाई.

सादर 

Comment by Samar kabeer on December 27, 2017 at 10:02pm

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ओबीओ के तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'ज़िन्दगी में पर कहो कितनी सहर होने को है'

इस मिसरे में 'कितनी' शब्द भर्ती का है, शायद आप यूँ कहना चाहते हैं:-

'ज़िन्दगी में पर हमारी क़ब सहर होने को है'

'हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाए हैं नये

पर निशान फिर वही मेरा ये सर होने को है'

ऊला मिसरे में 'नये' शब्द खटक रहा है,और सानी मिसरे में 'वही' शब्द भर्ती का है, ये शैर मेरे ख़याल से यूँ होना चाहिए:-

'हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाए देखिये

और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है'

'अब दुआओं का नहीं मुझपे असर होने को है'

इस मिसरे में ' नहीं' शब्द की जगह "कहाँ" शब्द रखने से गेयता बहतर होगी:-

'अब दुआओं का कहाँ मुझपे असर होने को है'

'देश के हालात पर गाँधी के बन्दर ने कहा

क्या मियाँ सोचा था हमने क्या मगर होने को है'

ऊला मिसरे में 'बन्दर ने कहा' एक वचन,और सानी में 'हमने'बहुवचन,यानी शुतरगुर्बा,ऊला यूँ कर सकते हैं :-

'देश के हालात पर गाँधी के बन्दर कह उठ्ठे'

आख़री शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, सानी के लिहाज़ से ऊला इस तरह होना था :-

'रहती दुनिया तक चलेगी यार अपनी बात भी'

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2017 at 8:43pm

बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय...
एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है...क्या ही खूब मतला हुआ
हर एक शेर लाजबाब..

Comment by नाथ सोनांचली on December 27, 2017 at 2:21pm

आद0 महेंद्र कुमार जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर मुबारकबाद कुबूल करें।

Comment by Mahendra Kumar on December 27, 2017 at 10:57am

आदाब आ. मोहम्मद आरिफ़. जी. ध्यान दिलाने का बहुत-बहुत शुक्रिया. अभी वांछित सुधार करता हूँ. आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mohammed Arif on December 27, 2017 at 8:25am

आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,

                                शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । दूसरे शे'र में ऐब-ए-तनाफुर है । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service