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मेरा वो घर मुझे मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था

बह्र 1222/1222/1222/1222

अकेला ही रहा था मैं मेरा छप्पर उठाना था
हजारों लोग तब आये मेरा जब घर गिराना था

वो बोतल फेंक देते है गरम जब हो गया पानी
तड़पकर मर गया देखो जिसे पानी पिलाना था

तड़पकर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको
मोहब्बत थी तुम्हें हमसे नही तुमको छिपाना था

मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने है
ये मैंने कब कहा था की मुझे रिश्ता निभाना था


तुम्हारी ही दुआओं का असर है माँ बुलंदी पर
जहाँ मैं आज पहुचा हूँ यही तुमको बताना था

रही क्या जिंदगानी खूब फिर भी है कसक मन में
मुझे बिछड़े हुए टूटे हुए दो दिल मिलाना था

हमारी दोस्ती तो है अमीरों से मगर हमको
ये जो सड़कों पे पलते हैं उन्हें अपना बनाना था

यकी तो था 'अतुल' हमको के जिंदा है वफ़ा लेकिन
मेरा वो घर मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था
-----©महर्षि त्रिपाठी'अतुल'
**************************

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:06pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी'अतुल'जी आदाब,बहुत अर्से बाद आपकी ग़ज़ल देख कर ख़ुशी हुई ।
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

मतले के ऊला मिसरे में 'ही'की जगह "जी"कर लें तो बात में वज़्न बढ़ जायेगा ।
'तड़प कर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको'
इस मिसरे में 'के'शब्द भर्ती का है, इसकी जगह "ये"कर सकते हैं,और सानी मिसरे में 'मोहब्बत'ग़लत है,इसका वज़्न 222हो रहा है,जबकि सही शब्द है "महब्बत"जिसका वज़्न है 122 ।
'मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने हैं'
इस मिसरे में अगर "हीर"राँझा वाली है तो ये स्त्रीलिंग है, देखियेगा ।
'मुझे बिछड़े हुए टूटे हुए दो दिल मिलाना था'
इस मिसरे में 'दो दिल'बहुवचन है, इस कारण रदीफ़ बदल रही है ।

'यकी तो था 'अतुल'हमको के जिंदा है वफ़ा लेकिन
मेरा वो घर मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था'
इस शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,ऊला मिसरे में 'हमको'और सानी मिसरे में 'मेरा'।
बाक़ी शुभ शुभ
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2017 at 8:06pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय त्रिपाठी जी..कहीं कहीं थोड़ी कमजोर सी लगी।
Comment by Ajay Kumar Sharma on October 31, 2017 at 8:47pm
बहुत सुन्दर रचना...

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