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लघुकथा--मलिका

" कौन हो तुम ?"
" जन्म से मुस्लिम , मन से सच्चा हिन्दुस्तानी , तन से अधनंगा और पेट से भूखा हूँ ।"
"लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रही हैं ?आप कौन हैं ?"
" हा! हा! हा ! हा ! हा !" ज़ोर का अट्टहास किया और बोली-" मुझे दंगों की दुनिया की बेताज मलिका "साम्प्रदायिकता" कहते हैं । " उसने बस इतना ही कहा और एकदम पिस्टल निकालकर दो-तीन गोलियाँ उसकी कनपटी में दाग दी और फरार हो गई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:29pm
आदरणीया राहिला जी लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मान बढ़ाने का बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:27pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी ।
Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:26pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देकर सफल बनाने का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Rahila on October 23, 2017 at 2:00pm
बेहतरीन रचना आदरणीय आरिफ़ साहब!खूब बधाई
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2017 at 10:10am

साम्प्रदायिकता की मल्लिका का ही बोलबाला है आजकल | जनता त्रस्त है | लाजवाब लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Mahendra Kumar on October 22, 2017 at 9:52am

वाह! शानदार लघुकथा है आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. शीर्षक चयन और उस शीर्षक को सार्थक करता संवाद दोनों उम्दा हैं. दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. 

//" जन्म से मुस्लिम , मन से सच्चा हिन्दुस्तानी , तन से अधनंगा और पेट से भूखा हूँ ।"
"लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रही हैं ?आप कौन हैं ?"// टंकण त्रुटी के कारण यहाँ दो बार इनवर्टेड कॉमा लग गया है. देख लीजिएगा. सादर.

Comment by Mohammed Arif on October 21, 2017 at 4:25pm
आदरणीया नीता कसार जी आदाब , आपकी सटीक और उत्साहजनक टिप्पणी से लेखन को सार्थकता और संबल मिला । बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Nita Kasar on October 21, 2017 at 2:09pm
मुझे दंगों की दुनिया की बेताज मलिका सांप्रदायिकता कहते है कटु करारे व्यंग्य से लबरेज़ कथा के लिये बधाई आद०मोहम्मद आरिफ़ जी
Comment by Mohammed Arif on October 20, 2017 at 5:55pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, आपकी उत्साहजनक टिप्पणी से लेखन को बल मिला और लेखन सार्थक हो गया । बहुत-बहुत आभार आपका ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2017 at 5:31pm
आदरणीय आरिफ जी गागर में सागर है आपकी यह रचना ।।क्या खूब तरीके से साम्प्रदायिकता को समझ दियाआपने वो भी इस खूबसूरत अंदाज से इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

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