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"सरकार, आज अगर एक बार देख लिया जाए तो हमका तसल्ली होइ जात", लच्छू की आवाज़ बहुत घबराई लग रही थी| उसने एक बार सर ऊपर उठाया और लच्छू को गौर से देखा, दोनों हाथ जोड़े हुए उसका चेहरा बेहद कातर लग रहा था|
"किसको देखना था लच्छू?, लच्छू कई बार किसी के लिए कह रहा था, इतना तो याद आया लेकिन किसके लिए कहा था, याद नहीं आया| कितनी बार तो टाल चुके हैं इसको, फिर भी!
"सरकार, पतोहू कई दिन से बीमार है और लड़का बाहर काम करत है, एक बार आप देख लेते तो ठीक हो जात", लच्छू की आवाज़ में अब थोड़ी उम्मीद जग गयी|
एकदम से उनके अंदर आग लग गयी, अब उनको लच्छू जैसे के घरवालों को देखना पड़ेगा, वह भी बिना पैसे| उनका चेहरा सख्त पड़ने लगा और वह जलती आँखों से लच्छू को फटकार कर भगाने वाले थे कि उनकी निगाह लच्छू की निगाह से मिली| एकदम से उनको लच्छू का चेहरा अपने जैसा लगने लगा और कल का वाक़या उनके जेहन में नाचने लगा|
"अरे सर, हम लोग हर काम नियम से करते हैं और बाकायदा टैक्स चुकाते हैं", इनकम टैक्स अधिकारी के सामने बैठे वह उसको लगभग गिड़गिड़ाने हुए समझाने का प्रयास कर रहे थे|
और वह झटके से उठ खड़े हुए "चलो लच्छू, देख लेते हैं| और दवा यही से ले लेना, मैं बोल दूंगा", कहते हुए उन्होंने लच्छू का कन्धा थपथपाया और बाहर निकल गए|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on October 23, 2017 at 10:26am

बहुत बहुत आभार आ लक्मण रामानुज लड़ीवालाजी और सलीम रज़ा रेवा जी   

Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 9:44am
आ. ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए मुबारक़बाद.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 18, 2017 at 5:44pm

अच्छी लगी लघु कथा  ! बधाई स्वीकारे 

Comment by विनय कुमार on October 18, 2017 at 5:04pm

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम समर कबीर साहब 

Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 2:51pm
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by विनय कुमार on October 18, 2017 at 11:31am

बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद साहब 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2017 at 11:13am
आइना दिखाती हुई, सबक़ देती हुई बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विनय कुमार साहब।

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