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तरही ग़ज़ल - "ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘ ( गिरिराज भंडारी )

2122/1122   1122  1122   22 /112

जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ

कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ 

 

उनका वादा है कि ख़्वाबों में मिलेंगे मुझसे

मुंतज़िर चश्म को अफसोस सुला भी न सकूँ

 

तश्नगी देख मेरी आज समन्दर ने कहा

कितना बदबख़्त हूँ मैं प्यास बुझा भी न सकूँ


मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना

कोशिशें लाख करूँ यार हिला भी न सकूँ 

 

यहाँ तो सिर्फ अँधेरों के तरफदार बचे

छिपा रक्खा है, चराग़ों को , जला भी न सकूँ

 

आपके झूठ रहे पर्दे में ये हसरत थी  

पर हूँ मज़बूर कि आईना छिपा भी न सकूँ

 

ज़ह’न ए नाबीना लिये आये हैं महफिल में उन्हें

सख्त मुश्किल है कि आईना  दिखा भी न सकूँ'

 

ख़ुदी पर जिसका यक़ीं हो नहीं वो कहता है

"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘’

 **********************************************

 मौलिक एवँ  अप्रकाशित

 

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Comment by Samar kabeer on September 28, 2017 at 2:33pm
अब ठीक है,गिरिराज भाई ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2017 at 12:15pm
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मतले का सानी मिसरा यूँ करके देखिए -अपनी तकलीफ़ ज़माने को बता भी न सकूँ। शेर 3 के मिसरों में रब्त सही नहीं लग रहा --सामने मेरी निगाहों के समुंदर है मगर । शेर 4 के उला मिसरे की लय सही नहीं ,--मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना ।
आखरी शेर के उला मिसरे को यूं करके देखिएगा --वो ही कहता है यकीं जिसका नहीं है खुद पर ।
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 11:32am

आ. नीरज भाई , आ. समर भाई - मतला अगर ऐसे कहूँ तो ?  देखिये भला -

जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ

रहना खामोश ज़बाँ को मैं सिखा भी न सकूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:33am

आदरणीय सलीम भाई , , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:32am

आ. नीरज भाई , उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार आपका । आपकी सभी सलाहें उचित भी हैं और शयराना भी , तदानुसार मै सुधार कर लूँगा , आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:30am

आ. राम बली भाई , बहुत अबहुत आभार आपका , सराहना के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:29am

आ. महेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:29am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:28am

आ. नीलेश भाई . प्रयास को सराहन एके लिये शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:27am

आदरनीय रवि भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

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